Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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शिखरी पर्वत स्वर्णमय और आकार में हिमवान पर्वत के समान है। इन सब पर्वतों के पार्श्वभाग विचित्र प्रकार की मरिणयों से सुशोभित हैं। क्षुद्र हिमवान पर्वत के ऊपर एक हजार योजन लम्बा और पांच सौ योजन चौड़ा पद्म नामक एक वृहद सरोवर है। महाहिमवान पर्वत पर महापद्म नामक एक सरोवर है जिसकी लम्बाई-चौड़ाई पद्म सरोवर से दुगुनी है। निषध पर्वत पर तिगंछी नामक एक सरोवर है जो महापद्म से दुगुना है। नीलवंत पर्वत पर केसरी नामक एक सरोवर है जिसकी लम्बाई-चौड़ाई तिगंछी के बराबर है। रुक्मी पर्वत पर महापुडरीक नामक एक सरोवर है। महापद्म की तरह ही उसकी लम्बाई-चौड़ाई है। शिखरी पर्वत पर पुण्डरीक नामक एक सरोवर है। वह पद्मसरोवर की तरह ही लम्बा-चौड़ा है। इन पद्मादि सरोवर के जल के भीतर दस योजन गहरे विकसित कमल हैं। इन छह सरोवरों में क्रमश: श्री, ह्री, घृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी नामक देवियां रहती हैं। उनकी प्रायु पल्योपम की है। इन देवियों के पास तीन सामानिक देव, पर्षदा के देव, प्रात्म-रक्षक देव और सेना है।
(श्लोक ५६६-५७८) भरत क्षेत्र में गंगा और सिंधू नामक दो नदियाँ हैं । हेमवन्त क्षेत्र में रोहिता और रोहिताशा है। इसी प्रकार हरिवर्ष क्षेत्र में हरिसलिला और हरिकांता है। महाविदेह में सीता और सीतोदा, रम्यक क्षेत्र में नरकांता और नारीकांता, हैरण्यवत क्षेत्र में स्वर्णकला और रोप्यकूला व ऐरवत क्षेत्र में रक्ता और रक्तवती नामक दो नदियां हैं। इनमें प्रथम नदी पूर्व समुद्र में और द्वितीय नदी पश्चिम समुद्र में गिरती है। गंगा और सिन्धु नदी में प्रत्येक के १४ हजार नदी-नालाओं का परिवार है। सीता और सीतोदा के अतिरिक्त प्रत्येक युग्म नदी में पहले की अपेक्षा दुगुनी नदियां और नालों का परिवार है। उत्तर की नदी भी दक्षिण की नदी की तरह ही शाखा नदी विशिष्ट है। शीता और शीतोदा नदियां पांच लाख बत्तीस हजार नदी-नालों से विशिष्ट है।
(श्लोक ५७८-५८०) भरत क्षेत्र विस्तार में पांच सौ छब्बीस योजन और योजन का उन्नीस भाग करने पर उसके छह भाग जितने होते हैं अर्थात् ५२६॥ योजन है। अनुक्रम से दुगुने-दुगुने विस्तार युक्त पर्वत और क्षेत्र महाविदेह क्षेत्र पर्यन्त अवस्थित हैं। उत्तर की ओर के