Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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देवलोक उत्तरार्द्ध में अवस्थित है। सनत्कुमार और महेन्द्र देवलोक भी उन्हीं की आकृति युक्त है। सनत्कुमार देवलोक दक्षिणार्द्ध में और महेन्द्र देवलोक उत्तरार्द्ध में अवस्थित है। लोक पुरुष के कोनीवाले भाग में और ऊर्ध्वलोक के मध्य भाग में ब्रह्मदेवलोक हैं। ब्रह्मन्द्र इसके अधिपति हैं। इसी देवलोक के अन्तिम भाग में सारस्वत, आदित्य, अग्नि, अरुण, गर्दतोभ, तूषित, अब्याबाध, मरुत और रिष्ट इन नौ जाति के लोकान्तिक देव रहते हैं। इसके ऊपर लान्तक देवलोक है। यहाँ के इन्द्र का नाम तेज है। इसके ऊपर महाशुक्र देवलोक है। यहाँ भी तेज नामक इन्द्र रहते हैं। इसके ऊपर सौधर्म और ईशान देवलोक की प्राकृति युक्त आनत और प्राणत देवलोक हैं। इनमें प्राणत कल्प में प्राणत नामक इन्द्र रहते हैं। वे इन दोनों क पों के अधिपति हैं। इसके ऊपर ऐसी ही प्राकृति वाले श्रारण और अच्युत देवलोक हैं। अच्युत देवलोक के अच्युत नामक इन्द्र इन देवलोकों के अधिपति हैं। ग्रं वेयक और अनुत्तर में अहमिन्द्र नामक देव रहते हैं। प्रथम दोनों देवलोक घनोदधि के ऊपर हैं, परवर्ती तीन देवलोक वायु के ऊपर । इसके बाद के तीन देवलोक धनवात
और तनुवात के ऊपर हैं । इनके पश्चात् के समस्त देवलोक आकाश पर अवस्थित हैं। इनमें इन्द्र सामानिक, त्रायस्त्रिश, पार्षद, अङ्गरक्षक, लोकपाल, अनीक, प्रकीर्ण, पाभियोगिक और किल्विषक नामक दस प्रकार के देवता रहते है। सामानिक आदि समस्त देवताओं के जो अधिपति हैं वे इन्द्र नाम से अभिहित हैं । इन्द्र के समान ऋद्धि सम्पन्न होने पर भी जो इन्द्र नहीं हैं उन्हें सामानिक कहा जाता है । जो इन्द्र के मन्त्री और पुरोहित तुल्य हैं वे त्रायस्त्रिश देवता हैं। जो इन्द्र के मित्र हैं वे पार्षद हैं। जो इन्द्र की रक्षा करते हैं वे प्रात्म-रक्षक देव हैं । देवलोक की रक्षा करने के कारण जो रक्षक बनकर घूमते हैं वे लोकपाल हैं। जो सैनिक का कार्य करते हैं वे अनीक हैं । जो प्रजापुज की तरह होते है उन्हें प्रकीर्ण देव कहा जाता है। जो सेवक का कार्य करते हैं वे पाभियोगिक देवता हैं। जो चण्डाल जाति की तरह हैं वे किल्विषक देव हैं। ज्योतिष्क और व्यन्तर देवों में त्रायस्त्रिश और लोकपाल देव नहीं होते।
(श्लोक ७५०-७७५) सौधर्म कल्प में बत्तीस लाख विमान हैं। ईशान कल्प में