Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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ग्रहण किया जाए तब तो दु:ख के साथ कहना होगा जगत विनष्ट हो गया है । अर्थात् जगत् के प्राणी दुर्गतिगामी ही होंगे।
(श्लोक ८९९-९०२) सम्यक्त्व के लिए शम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा और मास्तिकता इन पांच विषयों को जानना होगा। स्थिरता, प्रभावना, भक्ति, जिन-शासन में कुशलता और तीर्थ-सेवा इन पांच को सम्यक्त्व का अलंकार कहा गया है। शंका, आकांक्षा, विचिकित्सा, मिथ्यादृष्टि की प्रशंसा और उनका परिचय ये पांचों सम्यक्त्व को दूषित करते हैं।
(श्लोक ९०३-९०५) यह सुनकर ब्राह्मण बोला-सुलक्षणे, तुम भाग्यवती हो । कारण, तुमने धन-से सम्यक्त्व को प्राप्त कर लिया है। इस प्रकार बोलते-बोलेते शुद्धभट ने भी उसी समय सम्यक्त्व को प्राप्त कर लिया। शुभ प्रात्मा के लिए धर्म प्राप्ति में धर्मोपदेशक साक्षी मात्र होते हैं। सम्यक्त्व के उपदेश से वे दोनों श्रावक बन गए हैं । सिद्धरस से कांच और लोहा दोनों ही स्वर्ण हो जाते हैं ।
. . (श्लोक ९०६-९०८) उस समय अग्रहार में साधुओं का आगमन नहीं होता था अतः वहां के लोग श्रावक धर्म परित्याग कर मिथ्या बन गए थे । इसीलिए लोग उन दोनों की यही कहकर निन्दा करने लगे कि ये दोनों दुर्बुद्धि कुल-क्रमागत धर्म को छोड़कर श्रावक बन गए हैं। उस निन्दा की कोई परवाह न कर वे दोनों श्रावक धर्म में दृढ़ रहे । कालक्रम से गृहस्थाश्रम रूपी वृक्ष के फलस्वरूप ब्राह्मण दम्पती के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। (श्लोक ९०९-९११)
एक बार हेमन्त ऋतु में शुद्धभट पुत्र को लेकर ब्राह्मण सभा परिवृत धर्म-अग्निष्टिका के पास गए। इससे ब्राह्मणगण क्रुद्ध होकर एक स्वर में बोल उठे, तू श्रावक हो गया है-यहाँ से दूर हो जा, दूर हो जा। . .. (श्लोक ९१२-९१३).
___ इस प्रकार चण्डाल की तरह उसका तिरस्कार किया गया। वे सभी धर्म-अग्निष्टिका को खब अच्छी तरह से घेरकर बैठ गए। कारण, ईपिरायण होना मनुष्य का जाति धर्म है। (श्लोक ९१४)
उनके इस वाक्य से - दुःखी और क्रुद्ध शुद्धभट उस सभा के के सामने बोल उठा-यदि जिनोक्त धर्म संसार सागर को उत्तीर्ण करने में समर्थ नहीं है, यदि सर्वज्ञ तीर्थंकर प्राप्तदेव नहीं है, ज्ञान,