Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[133 पर पत्रवल्ली अङ्कित कर रहा हो । प्रत्येक मण्डप में रत्नपत्रिका सिली हुई थी उससे ऐसा लग रहा था मानो वह नेत्र विस्तारित कर रहा है । विचित्र प्रकार की मञ्च - रचनाओं से वहां मानो उत्कृष्ट शय्या विस्तृत है ऐसा प्रतीत हो रहा था । क्रमशः नगर में चलते हुए चक्रवर्ती जैसे इन्द्र स्व विमान में आते हैं उसी प्रकार उंचच तोरण युक्त पताकानों से शोभित चारणभाट द्वारा मांगलिक गीतों से मुखरित अपने गृहांगन में आए। फिर महाराज ने सर्वदा अपने साथ रहने वाले सोलह हजार देवता, बत्तीस हजार राजा, सेनापति, पुरोहित, गृहपति और वर्द्धकी नामक चार महारत्न, तीन सौ साठ रसोइए, श्रेणी प्रश्रेणी, दुर्गपालक, श्रेष्ठी, सार्थवाह और अन्य समस्त राजाओं को अपने-अपने स्थान पर लौट जाने की श्राज्ञा दी । तदुपरान्त उन्होंने अन्तःपुर के परिवार और स्त्री- रत्न सहित सत्पुरुषों के मन से विशाल और उज्ज्वल मन्दिर में प्रवेश किया | वहां स्नानगृह में स्नान और देवालय में पूजा कर राजा ने भोजनगृह में जाकर भोजन किया । ( श्लोक ३३५ - ३४७) अब साम्राज्य-लक्ष्मी रूपी लता के फल की भांति चक्री संगीत, नाटक प्रादि विनोद कार्यों में समय व्यतीत करने लगे ।
( श्लोक ३४८ )
एक दिन एक देव ने आकर महाराज सगर को कहा- राजन्, आपने भरत क्षेत्र को वश में किया है इसलिए इन्द्र जिस प्रकार अर्हतों का जन्माभिषेक उत्सव करते हैं उसी प्रकार हम श्रापको चक्रवर्ती पद पर अभिषिक्त करने का महोत्सव करेंगे ।
( श्लोक ३४९ - ३५० ) यह सुनकर चक्रवर्ती ने भृकुटि संचालन द्वारा सहज ही सहमति दे दी । कारण, महात्मा स्नेही लोगों के स्नेह का खण्डन नहीं करते । (श्लोक ३५१) अतः अभिषेक के लिए श्राभियोगिक देवों ने नगर के ईशान कोण में एक रत्नजड़ित मण्डप का निर्माण किया। वे समुद्र, तीर्थ, नदी और द्रों का पवित्र जल एवं पर्वतों से औषधियां लाए । जब सब कुछ प्रस्तुत हो गया तब चक्री ने अन्तःपुर और स्त्री-रत्न सहित रत्नाचल की गुफा की भांति उस रत्न- मण्डप में प्रवेश किया । वहां उन्होंने सिंहासन सहित मणिमय स्नानपीठ की अग्निहोत्री जिस प्रकार अग्नि की प्रदक्षिणा देता है उसी प्रकार प्रदक्षिणा दी