Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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इससे वह नवीन उत्कीर्ण दांत के ताटंक की भाँति लगने लगा। वायू से लता जिस प्रकार कम्पित होती है उसी प्रकार पृथ्वी काँपने लगी। बड़े-बड़े शिला-खण्डों के जैसे भोले की वर्षा होने लगी। सूखे बद्दल के चूर्ण की तरह रजोवृष्टि होने लगी। क्रुद्ध शत्रु की तरह महा-भयङ्कर वायु प्रवाहित होने लगी। अकल्याणकारी शृगाल दाहिनी ओर खड़े होकर देखने लगे। उल्लू मानो उनकी स्पर्धा कर रहा हो-इस भांति क्रोध से चिल्लाने लगे। मानो उच्च प्रकार के काल-चक्र से क्रीड़ा कर रहे हों इस प्रकार गिद्ध मण्डलाकार आकाश में उड़ने लगे । ग्रीष्म के दिनों में नदियाँ जिस प्रकार जलहीन हो जाती हैं उसी प्रकार सुगन्धित मदयुक्त हस्ती मदहीन हो गए। बिलों से जिस प्रकार भयंकर सर्प निकलते हैं उसी प्रकार ह्रश्वारवकारी अश्वों के मुख से धुआं निकलने लगा। इतने अपशकुन होने पर भी उन लोगों ने भ्र क्षेप मात्र भी नहीं किया। कारण, उन उत्पातसूचक अपशकुनज्ञाता मनुष्यों के लिए भवितव्य ही प्रमाण है। अतः वे स्नान के पश्चात् प्रायश्चित, कौतुकमंगलादि कर चक्रवर्ती की समस्त सेना सहित निकल पड़े। महाराज सगर ने स्त्रीरत्न के अतिरिक्त सभी रत्न पुत्रों के साथ दिए । कारण पुत्र भी स्व-प्रात्मा ही है।
(श्लोक ६२-७४) सगर के समस्त पुत्र ही निकल पड़े। उनमें कई उत्तम हस्ती पर बैठे थे । वे दिकपाल से लग रहे थे। कई अश्व पर चढ़े सूर्य-पुत्र रेवन्त से प्रतिभासित हो रहे थे। कई सूर्यादि ग्रह की तरह रथ पर उपविष्ट थे। सभी ने मुकुट पहन रखा था। अतः वे इन्द्र से लग रहे थे। उनके वक्षों पर हार लटक रहे थे अतः वे नदी प्रवाहयुक्त पवत-से लग रहे थे। उनके हाथों में विविध प्रकार के प्रायुध थे इससे वे पृथ्वी पर पाए प्रायुधधारी देवों-से लग रहे थे। उनके मस्तक पर छत्र थे। इससे वे वृक्ष-चिह्न युक्त व्यन्तर-से लग रहे थे। आत्म-रक्षकों द्वारा परिवृत्त वे तटभूमि द्वारा परिवृत्त समुद्र-से लग रहे थे। हाथ उठाकर चारण और भाट उनकी स्तुति कर रहे थे। अश्वगण तीक्ष्ण खुरों से पृथ्वी को खोद रहे थे । वाद्यों के शब्द से समस्त पृथ्वी वधिर की तरह हो गई थी। मार्ग में धूल के कारण दिक्समूह अन्ध की भाँति हो गए थे। (श्लोक ७५-८०)
विचित्र उद्यान में जैसे उद्यान-देव, पर्वत-शिखरों पर जैसे पर्वत-अधिष्ठायक देव, नदी तट पर जैसे नदी-पुत्र क्रीड़ा करते हैं