Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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पूर्वोक्त अढ़ाई द्वीप में देवकुरु और उत्तरकुरु के समान भाग के अतिरिक्त पाँच महाविदेह, पाँच भरत और पाँच ऐरवत इस प्रकार पन्द्रह कर्म भूमियाँ हैं। कालोदधि, पुण्डरोदधि और स्वयंभूरमण ये तीन समुद्र मीठे पानी के हैं, लवण समुद्र का जल नमकीन है। वरुणोदधि का जल विचित्र प्रकार की मनोहर मदिरा-सा है। क्षीरोदधि शर्करा मिश्रित घी का चतुर्थ भाग जिसमें रहता है ऐसे गाय के दूध-सा जल वाला है । घृतवर समुद्र का जल गाय के गर्म घी के जैसा है। इक्षु वर समुद्र इलायची, केशर और गोल मिर्च चूर्ण मिश्रित चतुर्थ भाग इक्षुरस के समान है । लवणोदधि, कालोदधि और स्वयंभूरमण ये तीन समुद्र मत्स्य और कच्छपों से परिपूर्ण है, अन्य नहीं। (श्लोक ७४३-७४७)
जम्बूद्वीप में कम से कम तीर्थंकर चक्रवर्ती वसुदेव बलदेव चार-चार होते हैं एवं उत्कृष्ट रूप में चौंतीस तीर्थंकर होते हैं
और तीस चक्रवर्ती या वसुदेव होते हैं । धातकीखण्ड में पुष्कराद्ध के दुगुने होते हैं।
(श्लोक ७४८७-४९) इस तिर्यक लोक के नौ नौ योजन सात रज्ज ऊपर महाऋद्धि सम्पन्न ऊर्ध्वलोक है। इसके मध्य सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लान्तक, शुक्र, सहस्रार, प्राणत, प्रणत, पारण और अच्युत नामक बारह कल्प अर्थात् देवलोक है और सुदर्शन, सुप्रबुद्ध, मनोरम, सर्वभद्र, सुविशाल, सुमन, सौमनस, प्रीतिकर और आदित्य नामक नौ ग्रेवेयक है, इससे ऊपर पाँच अनुत्तर विमान हैं। इनके नाम विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध है। इनमें पूर्व के चार पूर्व-दिशा से क्रमानुसार चारों दिशाओं में हैं। सर्वार्थसिद्ध विमान सबके मध्य में है। इसके बारह योजन ऊपर सिद्धशिला है। सिद्धशिला लम्बाई और चौड़ाई में पैंतालीस लाख योजन की है। सिद्ध शिला के ऊपर तीन कोस के बाद चतुर्थ कोस के षष्ठ भाग के लोकान पर्यन्त सिद्ध जीव रहते है। यह ऊर्ध्वलोक संभूतला पृथ्वी से सौधर्म और ईशान कल्प पर्यन्त डेढ़ राजलोक, सनत्कुमार और महेन्द्रलोक पर्यन्त अढ़ाई राजलोक, सहस्रार देवलोक पर्यन्त पंचम राजलोक, अच्युत देवलोक पर्यन्त षष्ठ राजलोक और लोकान्तर पर्यन्त सप्तम राजलोक है। सौधर्म कल्प और ईशान कल्प चन्द्रमण्डल की तरह वर्तुलाकार है। सौधर्म देवलोक दक्षिणार्द्ध में और ईशान