Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[95 तरह ही है। इस प्रकार मुख्य मेरु के समान प्रमाण युक्त चूलिका मध्य मेरु में है।
(श्लोक ६४४-५२) इस प्रकार मनुष्य क्षेत्र में अढाई द्वीप हैं। दो समुद्र, पैंतीस क्षेत्र, पाँच मेरु, तीन वर्षधर पर्वत, पांच देवकुरु, पाँच उत्तरकुरु और एक सौ साठ विजय हैं। पुष्कराद्ध द्वीप के चारों ओर मानुषोत्तर नामक पर्वत है । वह मनुष्य लोक के बाहर नगर की प्राकार की तरह गोलाकार है। मानुषोत्तर पर्वत सोने का है और अवशेष पुष्करार्द्ध में सत्रह सौ इक्कीस योजन ऊँचा और चार सौ तीस योजन पृथ्वी के अन्दर अवस्थित है। मूल का विस्तार एक हजार बाईस योजन है, मध्य का विस्तार सात सौ तेईस योजन और ऊपरी विस्तार चार सौ चौबीस योजन है। उस मानुषोत्तर पर्वत के बाहर मनुष्य का जन्म व मृत्यु नहीं होती। इसीलिए उसका नाम है मानुषोत्तर पर्वत । इसकी बाहरी भूमि पर अग्नि, मेघ, विद्युत, नदी, काल प्रादि नहीं होते। इस मानुषोत्तर पर्वत के भीतर की ओर ५६ अन्तर्वीप और ३५ क्षेत्र हैं। इनमें मनुष्य जन्म ग्रहण करता है। संहार विद्या के बल से या लब्धि योग से मेरु पर्वत आदि के शिखर पर, अढ़ाई द्वीप में और दोनों समद्रों में मनष्य जा सकता है। इनके भीतर भरत सम्बन्धित, जम्बूद्वीप सम्बन्धित और लवरण समुद्र सम्बन्धित इसी भाँति समस्त क्षेत्र द्वीप और समुद्र सम्बन्धित संज्ञा भेद से पृथक्पृथक् विभाग कहे जाते हैं। अर्थात् भरत जम्बूद्वीप ओर लवण समुद्र सम्बन्धित समस्त नाम, क्षेत्र, द्वीप ओर समुद्रों के विभाग हैं।
(श्लोक ६५३-६६३) __ मनुष्य दो प्रकार के हैं : आर्य और म्लेच्छ । क्षेत्र, जाति, कुल, कर्म, शिल्प, और भाषा-भेद से आर्य छह प्रकार के हैं । क्षेत्र
आर्य पन्द्रह कर्म भूमि में उत्पन्न होते हैं। उनमें भरतक्षेत्र के साढ़े पच्चीस देशों में जो जन्म ग्रहण करते हैं वे प्रार्य हैं। ये प्रार्य देश, स्व नगरियों द्वारा इस प्रकार परिचित हैं-(१) राजगह नगरी से मगध देश (२) चम्पा नगरी से अंग देश (३) ताम्रलिप्ति से बंग देश (४) वाराणसी से काशो देश (५) कञ्चनपुरी से कलिंग देश (६) साकेतपुरी से कोशल देश (७) हस्तिनापुर से कुरु देश (८) शौर्यपुरी से कुशात देश (९) काम्पिल्यपुरी से पांचाल देश (१०) अहिछत्रपुरी से जांगल देश (११) मिथिलापुरी से विदेह देश (१२)