Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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बजाया । उसका शब्द शान्त होने पर पूर्वानुरूप (ईशान लोक के सेनापति की भांति ) द्रुम ने घोषणा की । इससे सन्ध्या के समय पक्षीगण जिस प्रकार वृक्षों पर लौट प्राते हैं उसी प्रकार समस्त देवता चरमेन्द्र के पास आए । इन्दू को प्राज्ञा से उनके अभियोगिक देवताओं ने श्रर्द्धलक्ष योजन प्रमाण एक विमान तैयार करवाया । पांच सौ योजन ऊँचा इन्द्रध्वज सुशोभित वह विमान कूप्रक ( मस्तूल) सहित जहाज-सा लग रहा था । चौसठ हजार सामानिक देव, तैंतीस त्रास्त्रिश देवता, चार लोकपाल, तीन पर्षदा, सात वृहत् सैन्यवाहिनी के सात सेनापति, सामानिक देवताओं के चार गुरणा (अर्थात् २,५६,०००) श्रात्मरक्षक देवता, अन्य असुर कुमार, देव और देवी, पांच महिषी और अन्य परिवार सहित चमरेन्द्र उस विमान पर चड़े | क्षणमात्र में वे नन्दीश्वर द्वीप पहुँचे। वहां उन्होंने रतिकर पर्वत पर शक्रेन्द्र की तरह विमान को छोटा किया ! फिर गंगा का प्रवाह जिस प्रकार पूर्व समुद्र में पहुंचता है उसी प्रकार शीघ्रता से वे मेरुपर्वत के शिखर पर प्रभु चरणों में उपस्थित हुए । ( श्लोक ३७४-३८४)
उत्तर श्रेणी में अलङ्कार स्वरूप वलिचंचा नामक नगरी है । वहां वलि नामक इन्द्र राज्य करते हैं । उनका सिंहासन कम्पित हुआ । अवधिज्ञान से वे अर्हत् जन्म से अवगत हुए। फिर महाद्रुम नामक पदातिक सेवावाहिनी के सेनापति को प्रादेश दिया । उनकी श्राज्ञानुसार महौघस्वर नामक घण्टा उन्होंने तीन बार बजाया । घण्टे का शब्द बन्द होने पर उन्होंने असुरों के कानों के लिए अमृत तुल्य द्वितीय तीर्थङ्कर के जन्म की सूचना सुनाई। यह सुनकर समस्त देव उसी प्रकार वलीन्द्र के पास श्राए जिस प्रकार मेघ गर्जन को सुनकर हंस मानसरोवर पर जाता है । साठ हजार सामानिक देवता इसके चार गुणा ( २,४०,०००) प्रात्मरक्षक देवता चमरेन्द्र के साथ जितने देवता श्रीर परिवार की संख्या थी उतने ही देब और परिवार सहित चमरेन्द्र की ही तरह वृहद और समस्त साधन सम्पन्न विमान में बैठकर वे नन्दीश्वर द्वीप के रतिकर पर्वत प्रय अपने विमान को छोटा कर मेरुपर्वत के शिखर पर प्रभु के निकट आए । (श्लोक ३८५-३९०) फिर नागकुमार, विद्युत्कुमार, सुपर्णकुमार, अग्निकुमार, वायुकुमार, उदधिकुमार, द्वीपकुमार और दिक्कुमार नामक दक्षिण