Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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पुष्करावर्त मेघ वृष्टि करता है उसी प्रकार प्रति उदार वसुधारा की वृष्टि की। फिर शकेन्द्र को आज्ञा से उनके पाभियोगिक देवों ने यह घोषणा की
हे वैमानिक, भुवनपति, ज्योतिष्क और व्यन्तर देवगण, तुम सब सावधान होकर सुनो, जो अर्हत् और अर्हत् माता का अशुभ करने की इच्छा करेगा उसका मस्तक अर्जक (तुलसी) की मंजरी. की तरह सात प्रकार से छेद दिया जाएगा। (श्लोक ५०३-५१९)
उधर अन्य इन्द्र देवताओं के साथ प्रानन्द भरे हृदय से मेरु पर्वत से नन्दीश्वर द्वीप गए। सौधर्मेन्द्र भी भगवान् को नमस्कार कर जितशत्रु राजा के घर से निकले और उसी समय नन्दीश्वर द्वीप गए। उन्होंने दक्षिण अंजनाद्रि के शाश्वत चैत्य में शाश्वत अर्हत प्रतिमा के सम्मुख अष्टाह्निका महोत्सव किया । उनके चार लोकपालों ने अंजनाद्रि के चारों ओर चार दधिमुख पर्वत पर स्थित चैत्य में आनन्दपूर्वक उत्सव किया । ईशानेन्द्र ने उत्तर अंजनाद्रि पर्वत स्थित शाश्वत चैत्य में शाश्वत जिन-प्रतिमानों के सम्मुख अष्टाह्निका महोत्सव किया। उनके चार लोकपालों ने अंजनाद्रि के चारों दिशाओं में चार दधिमुख पर्वत चैत्य में ऋषभादि प्रतिमाओं का उत्सव किया। चमरेन्द्र ने पूर्व अंजनाद्रि पर और वलिन्द्र ने पश्चिम अंजनाद्रि पर अष्टाह्निका महोत्सव किया। चमरेन्द्र के लोकपालों ने पूर्व अंजनादि के चारों ओर दधिमुख पर्वतों पर और वलीन्द के लोकपालों ने पश्चिम अंजनादि की चारों दिशाओं में स्थित चार दधिमख पर्वतों पर स्थित चैत्यों में जिन-प्रतिमानों का उत्सव किया।
(श्लोक ५२०-५२८) उस रात्रि में प्रभु जन्म के पश्चात् वैजयन्ती देवी ने भी गंगा जिस प्रकार स्वर्ण कमल को उत्पन्न करती है उसी प्रकार सुखपूर्वक एक पुत्र को जन्म दिया।
(श्लोक ५२९) पत्नी और भ्रातृवधू विजया और वैजयन्ती के परिवार ने राजा जितशत्रु के परिवार को सम्वर्द्धना दी। सम्वद्धित होकर राजा ने भी उन्हें इस भांति पुरस्कार दिया जिससे उनके कुल में भी लक्ष्मी कामधेनु की तरह अविच्छिन्न हो गई । उस समय उनका शरीर इस प्रकार प्रफुल्लित हो गया जैसे मेघ के प्रागमन से सिन्धु नदी और चन्द्रमा के आगमन से समुद्र प्रफुल्लित होता है । राजा ने पृथ्वी से धैर्य, आकाश से प्रसन्नता और पवन से तृप्ति प्राप्त की।