Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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धारण करते हैं उनके सम्मुख सब प्रकार की लक्ष्मी सदैव खड़ी रहती है । भयंकर कर्म रूपी व्याधि से पीड़ित प्राणियों को रोगमुक्त करने के लिए उसके भाग्योदय से ही आप वैद्य के समान उत्पन्न हुए हैं । हे स्वामी, मरुभूमि के पथिक की तरह आपके दर्शन रूपी अमृत के उत्तम स्वाद से मुझे जरा भी तृप्ति नहीं होती । हे प्रभो, जिस प्रकार सारथी से रथ और कर्णधार से नौका ठीक प्रकार चलती है उसी प्रकार आपके उत्पन्न होने से जगत् के अधिवासी सत्पथ पर चलेंगे । हे भगवन्, आपके चरण कमलों की सेवा का सुयोग पाकर मेरा ऐश्वर्य अब कृतार्थ हो गया । इस प्रकार एक सौ आठ श्लोकों से उन्होंने प्रभु की स्तुति की। ( श्लोक ४९४ - ५०२) फिर पूर्व की तरह इन्द्र ने पांच रूप धारण किए। एक रूप से उन्होंने प्रभु को हाथों में लिया, दूसरे रूप में प्रभु के मस्तक पर छत्र धारण किया। तीसरे और चौथे रूप से हाथों में चंवर लिया और पंचम रूप से वज्र लेकर प्रभु के सम्मुख खड़े हो गए । तदुपरांत निज इच्छानुसार वे नम्रात्मा यथायोग्य परिवार सहित विनीता नगरी में जितशत्रु राजा के घर आए। वहां उन्होंने विजया देवी माता के निकट रखे तीर्थङ्कर बिम्ब को उठा लिया और तीर्थङ्कर को सुला दिया । उन्होंने प्रभु के मस्तक के पास सूर्य-चन्द्र के समान उज्ज्वल युग्म कुण्डल और शीतल एवं कोमल देवदृष्य वस्त्र रखे । चन्द्रातप में प्रकाश से उतरती किरण की तरह झिलमिलाता सुवर्ण कंकरणयुक्त सुसज्जित श्रीदाम गण्ड बांधा । प्रभु के नेत्रों को श्रानन्दित करने के लिए मणिरत्न सहित हार और अर्द्धहार वहां लटकाए । फिर चन्द्र जिस प्रकार कुमुदिनी की, सूर्य जिस प्रकार पद्मिनी की निद्रा हरण कर लेते हैं उसी प्रकार उन्होंने विजय देवी की प्रदत्त निद्रा हरण कर ली । इन्द्र की आज्ञा से कुबेर की सूचना के अनुसार जृम्भक जाति के देवताओं ने जितशत्रु राजा के घर में उसी समय बत्तीस कोटि मूल्य के सुवर्ण, रौप्य और रत्नों को पृथक् पृथक् वृष्टि की। बत्तीस नन्दभद्रासन बरसाए । मन्यंग कल्पवृक्ष की तरह वस्त्र औौर भद्रशालिक वन से चुन-चुनकर लाए गए हों ऐसे पत्र - पुष्प श्रौर फलों की चारों ओर वृष्टि की। चित्रांग नामक कल्पवृक्ष की तरह उन्होंने विचित्र वर्णों के पुष्पों की वृष्टि की । एलादि चूर्ण को उड़ाकर ले जा सके ऐसी दक्षिणी हवा की तरह गन्धवृष्टि और पवित्र चूर्ण की वृष्टि की। जिस प्रकार