Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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नगर कर और दण्ड स्थगित कर दिया और सैनिकों का प्रागमन निरुद्ध कर उस उत्सव को सम्पन्न किया। (श्लोक ५६३-५६७)
तदुपरान्त राजा ने अपने पुत्र तथा भ्रात पुत्र के नामकरण का उत्सव करने की आज्ञा सेवकों को प्रदान की। उन्होंने मोटे और अनेक तहदार वस्त्रों से एक मण्डप निर्मित करवाया। ऐसा लग रहा था मानो वह राज भय से सूर्य किरण को अन्दर जाने से रोक रहा था। उसके प्रत्येक स्तम्भ के निकट अनेक कदली स्तम्भ शोभित हो रहे थे। वे मानो पुष्प कलियों से प्राकाश में पद्मवन को विस्तारित कर रहे हैं ऐसे लग रहे थे। वहां विचित्र पूष्पों से पुष्पसगह निर्मित किया गया। ऐसा लग रहा था मानो आरक्त मधुकरी की भांति लक्ष्मी ने वहां पाश्रय लिया है। हंस पालकों से गुम्फित और रुई भरे काष्ठासनों से वह मण्डप नक्षत्रों भरे आकाश-सा सनाथ प्रतीत हो रहा था। जिस प्रकार अभियोगिक देव इन्द्र के विमान का निर्माण करते हैं उसी प्रकार सेवकों ने उसी मुहूर्त में राजा का मण्डप तैयार कर दिया। फिर मङ्गल द्रव्य हाथों में लिए प्रानन्दमना स्त्री-पुरुष जब वहाँ पाए छड़ीदार उन्हें यथा स्थान बैठाने लगे और अधिकारीगण कुकुम के अङ्गराग से ताम्बूल और पुष्पमालाओं से स्व-बन्धु की तरह उनका सम्मान करने लगे। उसी समय मधुर स्वर में मङ्गल वाद्य बजने लगे। कुलीन स्त्रियां मङ्गल गीत गाने लगीं। ब्राह्मण पवित्र मन्त्रोच्चारण करने लगे और गन्धर्वादि 'वद्धित हो, वद्धित हो' कहते हुए गीत गाने लगे। चारण-भाटों ने बिना ताल के जय-जय शब्द किया। उनकी उच्च प्रतिध्वनि ऐसी लग रही थी मानो सारा मन्डप ही वार्तालाप कर रहा है। जब से यह बालक गर्भ में आया तब से उसकी माँ को पासों के खेल में मैं हरा न सका इसीलिए राजा ने उसका नाम अजित रखा और अपने भ्रातृपुत्र का सगर ऐसा पवित्र नाम रखा । अनेक उत्तम लक्षणों से शोभान्वित पृथ्वी के उद्धार करने की शक्ति धारण करने वाले मानो दोनों राजा को दो भुजाएं हैं ऐसे दोनों कुमारों को देखकर राजा अखण्ड आनन्द को प्राप्त हुए, मानो वे अमृत पान में निमग्न हो
(श्लोक ५६८-५८१) द्वितीय सर्ग समाप्त