Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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और वस्त्र सरसर कर रहे थे ऐसे शिविका उठाने वाले पुरुष चलमान कल्पवृक्षों की तरह लग रहे थे। (श्लोक १९६-२१४) ___नगर-नारियां भी भक्ति से पवित्र मन लिए वहां प्रभु को देखने आयीं। उनमें कोई-कोई अपनी सहेलियों को पीछे छोड़ पाई थीं। किसी का वक्षलग्न हार टकर बिखर रहा था, किसी के स्कन्ध-से उत्तरीय खुलकर गिरा जा रहा था। कोई घर का दरवाजा बन्द किए बिना ही चली आई थी तो कोई विदेशागत अतिथि को बैठाकर पा रही थी। कोई तत्काल जन्मे पुत्र के जन्मोत्सव का परित्याग कर पा रही थी, कोई उसी समय के लग्नमुहूर्त की उपेक्षा करती चली आ रही थी। कोई स्नान करने जा रही थी; किन्तु स्नान न कर वह इधर ही चल पड़ी थी तो कोई भोजन करती हई भोजन छोड़कर चली आ रही थी। किसी के आधे शरीर पर अंगराग लगा था तो किसी ने आधे अलङ्कार पहने और प्राधे वहीं छोड़कर चली आई थी। कोई भगवान् के निष्क्रमण का संवाद सुनकर जैसी खड़ी थी वैसे ही दौड़ आई। किसी के वेणी में आधी माला गूंथी थी तो किसी के ललाट पर आधा तिलक लगा था, कोई गृहकार्य अधरा छोड़कर भा गई थी तो कोई नित्य कर्म बिना समाप्त किए ही आ गई थी और किसी का तो वाहन खड़ा था फिर भी पैदल ही चली पाई थी। यूथपति के चारों ओर भीड़ लगाए हस्तियों की तरह नगरजन कभी प्रभु के आगे तो कभी प्रभु के पीछे तो कभी दोनों प्रोर पाकर खड़े हो रहे थे । कोई प्रभु को अच्छी तरह देखने के लिए घर की छत पर चढ़ रही थी, कोई दीवार पर, तो कोई अट्टालिका पर, कोई मञ्च के अग्रभाग पर, कोई दुर्ग के कंगूरों पर चढ़ रही थी तो कोई वृक्षों पर, तो कोई हाथी के हौदों पर चढ़ी थीं। आगत अानन्दमना स्त्रियों में कोई उत्तरीय को चंवर कर वीजने लगीं, कोई मानो पृथ्वी में धर्म वीज वपन कर रही हों, इस प्रकार लाज से प्रभु को वधा रही थी। कोई अग्नि की तरह सात शिखामों युक्त पारती करने लगीं, कोई मानो मूत्तिमान यश हो इस भाँति के पूर्ण पात्र प्रभु के सम्मुख रखने लगी। कोई मङ्गल-विधान से पूर्ण कुम्भ धारण कर रही थी। कोई सान्ध्य-मेघ की तरह वस्त्रों से प्राकाश को प्रावृत कर रही थी। कोई नृत्य कर रही थी, कोई मङ्गल गीत गा रही थी, कोई प्रसन्नवदना सुन्दर हास्य कर रही थी। (श्लोक २१५-२३०)