Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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धारण किया। फिर सौन्दर्य रूपी अमृत की लता के समान अपनी प्राठों इन्द्राणियाँ और खूब बड़ी नाटय-सेना एवं गन्धर्व सेना सहित प्रानन्दित चित्त से विमान को प्रदक्षिणा देकर पूर्व द्वार से रत्नमय सीढ़ियों से होकर विमान में चढ़े और मध्य के रत्न सिंहासन पर पूर्व दिशा की ओर मुखकर सिंह जैसे पर्वत शिखर की शिला पर बैठता है उसी प्रकार बैठ गए । कमलिनी पत्रों पर जैसे हंस बैठते हैं उसी प्रकार अनुक्रम से इन्द्राणियां अपने-अपने आसन पर बैठ गयीं।
(श्लोक ३०७-३१२) चौरासी हजार सामानिक देवता उत्तर दिशा की सीढ़ियों से होकर विमान पर चढ़े और अपने-अपने भद्रासन पर बैठ गए। वे रूप में इन्द्र के प्रतिबिम्ब से लग रहे थे। अन्य देव-देवियां दक्षिण दिशा की सीढ़ियाँ चढ़कर स्व-स्व योग्य स्थान पर उपवेशित हो गए । सिंहासन पर बैठे इन्द्र के आगे जैसे एक-एक इन्द्राणी मंगल कर रही हों ऐसे आठ मांगलिक चले। फिर छत्र, झारी और पूर्ण कुम्भादि चले। कारण, ये स्वर्ग राज्य के चिह्न हैं और छाया की तरह साथ रहने वाले हैं। उनके आगे एक हजार योजन ऊँचा महाध्वज चला। हजारों छोटी-छोटी पताकाओं से वह पत्रयुक्त वृक्ष जिस प्रकार शोभा पाता है उसी प्रकार शोभा पा रहा था। उसके प्रागे इन्द्र के पांच सेनापति और अपने कार्य में अप्रमादी पाभियोगिक देवगण चले ।
(श्लोक ३१३-३१९) - इस भांति असंख्य ऋद्धिसम्पन्न देवता जिनकी सेवा में नियुक्त हैं, चारणगण जिनकी ऋद्धि की स्तुति कर रहे हैं, जिनके सम्मुख नाट्य सेना एवं गन्धर्व सेना नाट्य, गीत और नृत्य कर रहे हैं, पांच सेना वाहिनियां जिनके आगे महाध्वज चला रहे हैं और जो वादित वाद्यों से ब्रह्माण्ड को गुञ्जित कर रहे हैं ऐसे इन्द्र सौधर्म देवलोक की उत्तर दिशा से तिर्यक पथ से पालक विमान से पृथ्वी पर जाने की इच्छा से रवाना हुए। कोटि देवतामों से परिपूर्ण वह पालक विमान मानो चलमान सौधर्म कल्प हो इस भांति शोभित हो रहा था। उसकी गति मन की गति से भी द्रत थी। वह विमान असंख्य द्वीप, समुद् अतिक्रम कर सौधर्म कल्प से देवताओं के लिए क्रीड़ा करने के स्थान नन्दीश्वर द्वीप जा पहुँचा। वहां इन्द ने अग्निकोण में स्थित रतिकर पर्वत पर जाकर विमान को छोटा किया। फिर वहां से यात्रा कर विमान को अनुक्रम से छोटा करते-करते जम्बू