Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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रहता है । जब तक केशरी सिंह नहीं प्राता है तभी तक हाथी वन को नष्ट-भ्रष्ट करता है । जब तक सूर्य उदय नहीं होता तभी तक जगत अन्धकार में अन्ध रहता है । जब तक पक्षीराज गरुड़ प्राकर उपस्थित नहीं होते तभी तक जीवों को सर्पों का भय लगता है एवं जब तक कल्पवृक्ष प्राप्त नहीं होता तभी तक जीव दरिद्र रहता है । इसी प्रकार जब तक महाव्रत प्राप्त नहीं होते तभी तक जीवों को संसार का भय लगा रहता है । आरोग्य, रूप- लावण्य, दीर्घ आयु, महान समृद्धि, स्वामीत्व, ऐश्वर्य, प्रताप, साम्राज्य, चक्रवर्तीत्व, देव ऋद्धि, सामानिक देव ऋद्धि, इन्द्र पद, अहमिन्द्र प्रताप, सिद्धत्व और तीर्थंकरत्व – ये सभी महाव्रतों के ही फल हैं । एक दिन के लिए भी यदि कोई निर्मोही होकर व्रत पालन करता है तो वह इस जन्म में यदि मोक्षगामी न भी हो तो स्वर्ग प्रवश्य जाता है । तब वह भाग्यवान जो तृरण की तरह लक्ष्मी का परित्याग कर दीक्षा ग्रहण करता है चिरकाल तक चारित्र पालन करता है उसका तो कहना ही क्या ?" ( श्लोक २५४-२६३)
इस प्रकार देशना देकर अरिंदम मुनि अन्यत्र विहार कर गए । कारण, मुनि एक ही स्थान पर नहीं रहते । विमलवाहन मुनि भी ग्राम, शहर, प्राकर एवं द्रोणमुखादि स्थानों में गुरु के साथ छाया की भाँति विहार करने लगे । (श्लोक २६४-२६५)
पाँच समिति : (१) इर्या समिति - सूर्य किरण चारों श्रोर व्याप्त हो जाने पर दूसरे जीवों की रक्षा के लिए चार हाथ परिमाण भूमि पर दृष्टि रख इर्या विचक्षण अर्थात् प्रत्येक वस्तु के प्रति सावधान होकर वे ऋषि चलते थे । (२) भाषा समिति - भाषा समिति में चतुर वे मुनि निरवद्य ( ताकि दूसरों को दु:ख न हो), मित (मर्यादित) एवं सकल हितकारी वारणी बोलते थे । (३) एषणा समिति - एषणा निपुरण वे मुनि बयालिस दोषों का परिहार कर पारने के दिन आहार और जल ग्रहरण करते थे । ( ४ ) प्रदान निक्षेप समिति - ग्रहण और विसर्जन करने में चतुर वे मुनि प्रासनादि को देखकर सावधानी से उसकी प्रतिलेखना करते और उठाते एवं रखते थे । (५) परिष्ठापनिका समिति - समस्त प्राणियों पर दया भाव रखने वाले वे मुनि कफ, मल, मूत्रादि निर्णीत पृथ्वी पर ही फेंकते । ( श्लोक २६६-२७०)