Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 2
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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निज कान्ति से दिक् समूह को कनक सूत्रदान कर रही थी एवं कोई वैदूर्यमणि की पुत्तलिका की तरह कान्तिमान लग रही थी ।
( श्लोक १३१-१४१) गोलाकार स्तनों से युगल चक्रवाक सह मानो नदी, लीलायुक्त गमन से मानो राजहंसिनी, कोमल करतल से मानो पत्र सहित लता, सुन्दर नेत्रों से मानो विकसित पद्मयुक्ता पद्मिनी, सुन्दरता की पूर्णता से मानो जल सहित वापिका और लावण्य से कामदेव की अधिदेवता हों इस प्रकार वे सुशोभित हो रही थीं । ऐसी रूप सम्पन्ना वे ५६ दिक् कुमारियाँ अपने-अपने आसनों को कम्पित होते देख अवधिज्ञान से उसी मुहूर्त्त में विजया देवी की कुक्षि से तीर्थंकर का पवित्र जन्म हुआ है ज्ञात किया । वे जान गई इस जम्बूद्वीप के दक्षिण उत्तराद्ध के मध्यभाग में विनीता नगरी में इक्ष्वाकुवंशीय राजा राज्य करते हैं । उनका नाम है जितशत्रु । उनकी धर्मपत्नी का नाम है विजया देवी । उन्हीं के गर्भ से इस अवसर्पिणी के तीन ज्ञान के धारक द्वितीय तीर्थंकर भगवान ने जन्म लिया है यह जानकर आसन से उठकर आठ-दस कदम तीर्थंकर के श्रभिमुख जाकर मानो मन को अग्रवर्ती कर रही हो इस प्रकार प्रभु को नमस्कार कर सभी ने शक्रस्तव से भक्तिपूर्वक उनकी वन्दना की । तदुपरान्त सभी अपने-अपने सिंहासन पर बैठकर अपने-अपने अभियोगिक देवों को इस प्रकार आज्ञा दी : ( श्लोक १४२ - १५२ ) हे देवगण, दक्षिण भरतार्द्ध में द्वितीय तीर्थंकर का जन्म हुआ है। सूतिका कर्म करने के लिए श्राज हमें वहाँ जाना होगा । अतः खूब बड़ा और विस्तृत एवं विविध रत्नों का विमान हम लोगों के लिए बनाओ । श्राज्ञा पाकर महान् शक्तिशाली देवगरण ने उसी समय विमान तैयार कर उन्हें ज्ञात करवाया । वे विमान हजार-हजार स्वर्णकुम्भों से उन्नत थे । पताकाओं से मानो वैमानिक देवताओं के वे पल्लव हों इस प्रकार लग रहे थे । ताण्डव श्रम से क्लान्त नर्तकियों का मानो समूह हो इस प्रकार पुत्तलिका युक्त मरिण स्तम्भ से वे सुन्दर लग रहे थे । घण्टाध्वनि के आडम्बर से वे हस्तियों का अनुसरण कर रहे थे । शब्दायमान घुंघरुनों के समूह से वे वाचाल हो गए हों ऐसे लग रहे थे । मानो लक्ष्मी का श्रासन हो ऐसी वज्रवेदिका से वे सुशोभित थे एवं उनसे प्रसारित सहस्र किरण मालानों से मानो सूर्य का प्रतिविम्ब हों वे ऐसे लग रहे थे ।