Book Title: Tirthankar 1974 04
Author(s): Nemichand Jain
Publisher: Hira Bhaiyya Prakashan Indore

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Page 10
________________ ऐसे थे सुरेन्द्र लोगों ने प्रश्न पूछे, समझाने-बुझाने की अनगिन कोशिशें कीं, रोकने के असफल प्रयत्न किये, लेकिन ऊगते सूरज को भला कौन रोकता ? -वासुदेव अनन्त मांगळे मुनि विद्यानन्दजी के नाम से विख्यात महात्मा का जन्म २२ अप्रैल १९२५ के दिन कर्नाटक के शेडवाल नामक एक छोटे-से गाँव में हुआ था। माता-पिता ने प्यार से बालक का नाम सुरेन्द्र रखा । आज सुरेन्द्र नाम का वह बालक देवताओं का सिरमौर 'सुरेन्द्र' ही नहीं मानवों का सिरमौर ‘मानवेन्द्र' बन गया है। शेडवाल में पाँच सौ वर्ष पुराने जिन-मन्दिर के प्रमुख पुजारी श्री आण्णाप्पा उपाध्ये सुरेन्द्र के बाबा थे। उनके दो पुत्र श्री भरमप्पा और श्री कालप्पा शेडवाल गाँव की पुरानी पर हवा और रोशनीदार हवेली में रहते थे। सारा गाँव श्री आण्णप्पा और उनके दोनों पुत्रों की विद्वत्ता और मृदु व्यवहार का कायल था। सुरेन्द्र की माता सौभाग्यवती सरस्वतीदेवी सुशील, स्नेहमयी और अतिथि-सत्कार करने वाली थीं। ऐसे सात्विक, सदाचारी और सुसंस्कृत माता-पिता का, और ऐसे सुरुचिपूर्ण वातावरण का प्रभाव बालक पर पड़ना ही था। सुरेन्द्र वचपन से ही सबकी आँखों के तारे थे । उनका व्यक्तित्व बरबस ही सबको आकर्षित कर लेता था। नाना-नानी , दादा-दादी सभी उन पर लाड़ बरसाते थे । उनको मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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