Book Title: Tattvarthadhigam Sutra
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 9
________________ ०७ ७७ विषय नित्यत्व का वर्णन और अनेकान्तस्वरूप का समर्थन । पौद्गलिक बंध के हेतु और द्रव्य का लक्षण । गुण का और परिणाम का स्वरूप। ६-आस्रव का स्वरूप। सांपरायिक आस्रव के भेद । अधिकरण के भेद। ज्ञानावरण आदि कर्मों के वंध हेतुएँ। ७-व्रत का स्वरूप । व्रत के भेद । व्रतों की भावनाएँ। हिंसा आदि का स्वरूप । । व्रती के भेद । अगारी व्रत का वर्णन । सम्यग् दर्शन आदि के अतिचार । दान का वर्णन। ८-बंध के हेतुएँ। बंध का स्वरूप और उसके भेद । कम के मूल और उत्तर भेद । कर्मो की स्थिति । अनुभाव और प्रदेश बंध का वर्णन। - - ९-आस्रव का स्वरूप और उसके उपाय । गुप्ति का स्वरूप समिति और धर्म के भेद । अनुप्रेक्षा के भेद । परिसहों का वर्णन । चारित्र के भेद । तप का वर्णन । ध्यान का वर्णन । निर्ग्रन्थ के भेद । १० - केवलज्ञान को उत्सत्ति के हेतु । सिद्धयमान गति के हेतु। 209 Se SW ६ ६ . १०१

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