Book Title: Tattvartha Vrutti
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना १ ग्रन्थविभाग [ तत्त्व और तत्त्वाधिगम के उपाय ] आजमे २५००-२६०० वर्ष पूर्व इस भारतभूमिके बिहार प्रदेशमें दो महान् नक्षत्रोंका उदय हुआ था, जिनकी प्रभासे न केवल भारत ही आलोकित हुआ था किन्तु सुदूर एशियाके चीन जापान तिब्बत आदि देश भी प्रकाशित हुए थे। आज भी विश्वमें जिनके कारण भारतका मस्तक गर्वोन्नत है, वे थे निगंठनाथपुन वर्धमान और शौद्धोदनि-गौतम बुद्ध । इनके उदयके २५० वर्ष पहले तीर्थंकर पार्श्वनाथने काशी देशमें जन्म लिया था और श्रमणपरंपरा के चातुर्याम संवरका जगत्को उपदेश दिया था। बुद्धने बोधिलाभके पहिले पार्श्वनाथकी परंपराके केशलंच, आदि उग्रतपों को तपा था, पर वे इस मार्गमें सफल न हो सके और उनने मध्यम मार्ग निकाला। निग्गंठनाथपुत्त साधनोंकी पवित्रता और कठोर आत्मानुशासनके पक्षपाती थे। वे नग्न रहते थे, किसी भी प्रकारके परिग्रहका संग्रह उन्हें हिंसाका कारण मालूम होता था । मात्र लोकसंग्रहके लिए आचारके नियमोंको मृदु करना उन्हें इष्ट नहीं था । संक्षेपमें बुद्ध मातृहहृदय दयामति थे और निग्गंठनाथपुत्त पितृचेतस्क साधनामय संशोधक योगी थे । बुद्धके पास जब उनके शिष्य आकर कहते थे---'भन्ते, जन्ताघर की अनुज्ञा दीजिए, या तीन चीवरकी अनुज्ञा दीजिए' तो दयालु बुद्ध शिष्यमंग्रहके लिए उनकी सुविधाओंका ध्यान रखकर आचारको मृदु कर उन्हें अनुज्ञा देते थे । महावीरकी जीवनचर्या इननी अनुशासित थी कि उनके संघके शिष्योंके मनमें यह कल्पना ही नहीं आती थी कि आचारके नियमोंको मदु करानेका प्रस्ताव भी महावीरसे किया जा सकता है । इस तरह महावीरकी संघपरंपरामें चुने हुए अनुगासित दीर्घ तपस्वी थे, जब कि बुद्धका संघ मृदु मध्यम सुकुमार सभी प्रकारके भिक्षुओंका संग्राहक था। यद्यपि महावीरकी तपस्याके नियम अत्यंत अहिंसक अनशासनबद्ध और स्वावलंबी थे फिर भी उस समय उनका संघ काफी बड़ा था। उसकी आचारनिष्ठा दीर्घ तपस्या और अनुशासन की साक्षी पाली साहित्य में पग पग पर मिलती है। महावीर कालमें ६ प्रमख संघनायकोंकी चर्चा पिटक साहित्य और आगम साहित्यमें आती है। बौद्धों के पाली ग्रंथोंमें उनकी जो चर्चा है उस आधारसे उनका वर्गीकरण इस प्रकार कर सकते हैं (१) अजितकेशकम्बलि-भौतिकवादी, उच्छेदवादी। (२) मक्खलिगोशाल-नियतिवादी, संसारशुद्धिवादी । (३) पूरण कश्यप-अक्रियावादी। (४) प्रक्रुध कात्यायन--शाश्वतार्थवादी, अन्योन्यवादी । (५) संजयवेलठिपुत्त--संशयवादी, अनिश्चयवादी या विक्षेपवादी । (६) बुद्ध--अव्याकृतबादी, चतुरार्यसत्यवादी, अभौतिक क्षणिक अनात्मवादी। (७) निग्गंठनाथपुत्त-स्याद्वादी, चातुर्यामसंवरवादी। (१) अजितकेशकम्बलिका कहना था कि-"दान यज्ञ तथा होम सब कुछ नहीं हैं। भले बुरे कर्मों का फल नहीं मिलता। न इहलोक है, न परलोक है, न माता है, न पिता है, न अयोनिज ( औपपातिक देव ) सत्त्व है, और न इहलोक में वैसे ज्ञानी और समर्थश्रमण या ब्राह्मण हैं जो इस लोक और परलोकको स्वयं जानकर और साक्षात्कारकर कहेंगे । मनुष्य पाँच महाभूतोंसे मिलकर बना है । मनुष्य जब मरता है तब पृथ्वी १ देखो दोधनिकाय समाजम्मफलमत्त १।२ । हिन्दी अनुवाद । For Private And Personal Use Only

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