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स्थावर जीव हैं।
तेजो- वायू द्वीन्द्रियादयश्च त्रसाः ॥१४॥ अर्थ - तेउकाय, वायुकाय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय,
चउरिन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय त्रस जीव होते हैं ।
पंचेन्द्रियाणि ॥ १५ ॥
अर्थ – इन्द्रियाँ पाँच प्रकार की होती हैं ।
तत्त्वार्थ सूत्र
द्विविधानि ॥ १६ ॥
अर्थ - ये पाँचों इन्द्रियाँ दो प्रकार की होती हैं । निर्वृत्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम् ॥१७॥
अर्थ - द्रव्येन्द्रिय के दो प्रकार हैं, निर्वृत्ति और उपकरण । लब्ध्युपयोगी भावेन्द्रियम् ॥१८॥
अर्थ - भावेन्द्रिय के दो प्रकार हैं, लब्धि और उपयोग उपयोगः स्पर्शादिषु ॥१९॥
अर्थ – उपयोग स्पर्शादि विषयों में होता है ।
स्पर्शन- रसन- घ्राण-चक्षुः - श्रोत्राणि ॥२०॥ अर्थ - स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र ये पाँच इन्द्रियाँ हैं ।
स्पर्श-रस- गन्ध-वर्ण- शब्दास्तेषाम् अर्थाः ॥ २१ ॥ अर्थ - स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और शब्द
ये क्रमशः
इन विषयों को ग्रहण करती हैं । श्रुत-मनिन्द्रियस्य ॥२२॥ अर्थ - श्रुत मन का विषय है ।
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