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तत्त्वार्थ सूत्र नव, दो, अट्ठावीस, चार, बयालीस, दो और पाँच भेद हैं ।
मत्यादीनाम् ॥७॥
अर्थ - मति आदि पाँच ज्ञानों का आवरण करने वाले कर्म पाँच ज्ञानावरण हैं।
चक्षु-रचक्षु-रवधि-केवलानां-निद्रा-निद्रानिद्राप्रचला-प्रचलाप्रचला-स्त्यानद्धि-वेदनीयानि च ॥८॥
अर्थ - चक्षु, अचक्षु, अवधि और केवल - ये चार आवरण रूप तथा निद्रा, निद्रा-निद्रा प्रचला, प्रचला-प्रचला और स्त्यानद्धि इन पाँचों का वेदनः इस प्रकार दर्शनावरणीय कर्म के नौ भेद हैं।
सदसद्वेद्ये ॥९॥
अर्थ – सातावेदनीय और असातावेदनीय – ये वेदनीय कर्म के दो भेद हैं।
दर्शन-चारित्रमोहनीय-कषाय-नोकषाय-वेदनीयाख्यास्त्रि-द्वि-षोडश-नवभेदाः सम्यक्त्व-मिथ्यात्वतदुभयानि, कषाय-नोकषायावनन्तानुबन्ध्य-प्रत्याख्यानप्रत्याख्यानावरण-संज्वलन-विकल्पाश्चैकशः क्रोध-मानमाया-लोभा-हास्य-रत्यरति-शोक-भय-जुगुप्सा-स्त्री-पुंनपुंसकवेदाः ॥१०॥
अर्थ - मोहनीय कर्म के उत्तरभेद दर्शनमोहनीय, चारित्रमोहनीय, कषायमोहनीय और नोकषायमोहनीय के क्रम से तीन, दो, सोलह और नौ भेद हैं।