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तत्त्वार्थ सूत्र सूक्ष्मसंपराय और यथाख्यात – ये चारित्र के पाँच प्रकार हैं।
अनशन-ऽवमौदर्य-वृत्तिपरिसंख्यान-रसपरित्यागविविक्तशय्यासन- कायक्लेशा बाह्यं तपः ॥१९॥
अर्थ - अनशन, अवमौदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग विविक्तशय्यासन और कायक्लेश - ये बाह्य तप के छ: प्रकार हैं।
प्रायश्चित्त-विनय-वैयावृत्त्य-स्वाध्याय-व्युत्सर्गध्यानान्युत्तरम् ॥२०॥ _अर्थ - प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और ध्यान ये अभ्यंतर तप के छ: प्रकार हैं ।
नव-चतुर्दश-पंच-द्विभेदं यथाक्रमं प्राग्ध्यानाद् ॥२१॥
अर्थ - ध्यान से पहले के आभ्यंतर तपों के क्रमशः नौ, चार, दस, पाँच और दो (उत्तर) भेद हैं ।
आलोचन-प्रतिक्रमण-तदुभय-विवेक-व्युत्सर्गतपश्छेद-परिहारोपस्थापनानि ॥२२॥
अर्थ - आलोचना, प्रतिक्रमण, तदुभय (आलोचना और प्रतिक्रमण) विवेक, व्युत्सर्ग, तप, छेद, परिहार एवं उपस्थापना ये प्रायश्चित के नौ भेद हैं।
ज्ञान-दर्शन-चारित्रोपचाराः ॥२३॥
अर्थ - ज्ञान, दर्शन, चारित्र और उपचार ये विनय के चार भेद हैं।