________________
तत्त्वार्थ सूत्र
बादर संपराये सर्वे ॥१२॥
अर्थ - बादर सम्पराय तक सभी ( बाईस) परीषह
होते हैं ।
५१
ज्ञानावरणे प्रज्ञा - ऽज्ञाने ॥१३॥
अर्थ प्रज्ञा और अज्ञान ये दो परीषह ज्ञाना
वरणीय कर्म से संबंधित हैं ।
दर्शनमोहा - ऽन्तराययो - रदर्शना - लाभौ ॥१४॥ अर्थ - दर्शन मोह के उदय से अदर्शन और अंतराय कर्म के उदय से अलाभ परीषह होता है ।
चारित्रमोहे नाग्न्या - ऽरति - स्त्री - निषद्या - ऽऽक्रोशयाचना - सत्कार - पुरस्काराः ॥१५॥
अर्थ - चारित्र मोहनीय कर्म के उदय से नग्नता, अरति, स्त्री, निषद्या, आक्रोश, याचना, सत्कार - पुरस्कार ये सात परीषह होते हैं ।
वेदनीये शेषाः ॥१६॥
अर्थ - शेष परीषह वेदनीय कर्म के उदय से होते हैं । एकादयो भाज्या युगपदेकोनविंशतेः ॥१७॥ अर्थ - एक जीव को एक साथ एक से उन्नीस परीषह तक हो सकते हैं।
सामायिक - छेदोपस्थाप्य परिहारविशुद्धिसूक्ष्मसंपराय-यथाख्यातानि चारित्रम् ॥१८॥
अर्थ सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि,
—
-