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तत्त्वार्थ सूत्र
‘निर्ग्रन्थ' शब्द का अर्थ होता है - ग्रन्थि से रहित । आध्यात्मिक क्षेत्र में ग्रन्थि अर्थात् गांठ होती है - राग की, द्वेष की, मोह की, परिग्रह आदि की । अतः ऐसे साधक जिसमें राग-द्वेष की गांठ न हो उन्हें निर्ग्रन्थ कहते हैं ।
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संयम- श्रुत- प्रतिसेवना - तीर्थ-लिंग-लेश्योपपातस्थान - विकल्पतः साध्याः ॥४९॥
अर्थ - संयम, श्रुत, प्रतिसेवना, तीर्थ, लिंग, लेश्या, उपपात और स्थान इन आठ द्वारों से पुलाकादि निर्ग्रन्थों का स्वरूप जानना चाहिए ।