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तत्त्वार्थ सूत्र दशवाँ अध्याय मोहक्षयाद् ज्ञान-दर्शनावरणा-ऽन्तराय-क्षयाच्च केवलम् ॥१॥
अर्थ - मोहनीय तथा ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अंतराय के क्षय से केवलज्ञान प्रकट होता है ।
बन्धहेत्वभाव-निर्जराभ्याम् ॥२॥
अर्थ - बंध हेतुओं के अभाव से और पूर्व संचित कर्मों की निर्जरा से कर्मों का आत्यन्तिक क्षय होता है।
कृत्स्न-कर्म-क्षयो मोक्षः ॥३॥ अर्थ - सम्पूर्ण कर्मों का क्षय ही मोक्ष है।
औपशमिकादि-भव्यत्वा-ऽभावाच्चा-ऽन्यत्रकेवल-सम्यक्त्व-ज्ञान- दर्शन सिद्धत्वेभ्यः ॥४॥
अर्थ - क्षायिक सम्यक्त्व, केवलज्ञान, केवलदर्शन और सिद्धत्व को छोड़कर शेष औपशमिक आदि भावों के तथा भव्यत्व के अभाव से मोक्ष प्रकट होता है।
तदनन्तर-मूर्ध्वं गच्छत्यालोकान्ताद ॥५॥
अर्थ – समस्त कर्मों का क्षय होने पर आत्मा ऊपर लोकांत तक जाती है।
पूर्वप्रयोगा-दसङ्गत्वाद्-बन्ध-विच्छेदात्तथागतिपरिणामाच्च तद्गतिः ॥६॥