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तत्त्वार्थ सूत्र
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नाम और गोत्र कर्म की उत्कृष्ट स्थिति बीस कोटाकोटि
सागरोपम है ।
आयु कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तैंतीस सागरोपम है । वेदनीय कर्म की जघन्य स्थिति बारह मुहूर्त है । नाम और गोत्र की जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त है । शेष पाँच कर्मों की (ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, आयुष्य और अंतराय ) जघन्य स्थिति अंतर्मुहूर्त है ।
विपाको - ऽनुभावः ॥२२॥
अर्थ - विपाक अर्थात् विविध प्रकार के फल देने की शक्ति को ही अनुभाव (रस) कहते हैं ।
स यथानाम ॥२३॥
अर्थ - वह अनुभाव उन-उन प्रकृतियों के नाम के अनुसार ही होता है ।
ततश्च निर्जरा ॥ २४ ॥
अर्थ - विपाक हो जाने के बाद उन कर्मों की निर्जरा हो जाती है।
नाम-प्रत्ययाः सर्वतो योगविशेषात् सूक्ष्मैक क्षेत्राऽवगाढ-स्थिताः सर्वात्मप्रदेशेष्व नन्तानन्त-प्रदेशाः
॥२५॥
अर्थ - नाम अर्थात् कर्मप्रकृतियों के कारण और सभी