Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 49
________________ ४८ तत्त्वार्थ सूत्र ओर से योगों की क्रिया द्वारा सूक्ष्म एक क्षेत्र में स्थित स्थिर अनन्तानन्त प्रदेशवाले (कर्म) पुद्गलस्कंध आत्मा के सभी प्रदेशों में दृढ़तापूर्वक बंध जाते हैं, वह प्रदेश बंध है। सद्वेद्य, सम्यक्त्व-हास्य-रति-पुरूषवेद-शुभायुर्नाम-गोत्राणि पुण्यम् ॥२६॥ अर्थ – सातावेदनीय, सम्यक्त्व मोहनीय, हास्य, रति, पुरूषवेद, शुभ आयु, शुभनाम और शुभ गोत्र ये आठ पुण्य प्रकृतियाँ हैं।

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