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तत्त्वार्थ सूत्र
जैसे सम्यक्त्व, मिथ्यात्व, तदुभय (मिश्र) दर्शन मोहनीय के ये तीन भेद हैं । चारित्र मोहनीय के कषाय और नोकषाय ये दो भेद हैं । कषाय मोहनीय के क्रोध, मान, माया, लोभ ये चार तथा इनके प्रत्येक के अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यानी, प्रत्याख्यानी और संज्वलन ये चार-चार प्रकार होने से सोलह भेद हैं ।
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हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरूषवेद और नपुंसकवेद ये नौ नोकषाय के भेद हैं । नारक- तैर्यग्योन - मानुष - दैवानि ॥ ११ ॥
अर्थ - नरकायु, तिर्यंचायु, मनुष्यायु और देवायु- ये चार आयुष्य कर्म के भेद हैं ।
गति-जाति-शरीरा-ऽङ्गोपाङ्ग-निर्माण- बन्धनसंघात - संस्थान - संहनन - स्पर्श- रस- गन्ध-वर्णाऽऽनुपूर्व्यगुरुलधूपघात - पराघाता ऽऽतपोद्योतोच्छवासविहायोगतयः प्रत्येकशरीर - त्रस - सुभग- सुस्वर - शुभसूक्ष्म-पर्याप्त-स्थिरा -ऽऽदेय - यशांसि सेतराणि तीर्थकृत्त्वं च ॥१२॥
अर्थ - गति, जाति, शरीर, अंगोपांग, निर्माण, बन्धन, संघात, संस्थान, संहनन, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, आनुपूर्वी, अगुरूलघु, उपघात, पराघात, आतप, उद्योत, उच्छ्वास, विहायोगति ये इक्कीस (२१) और प्रतिपक्ष सहित बीस जैसे- प्रत्येक, साधारण, त्रस, स्थावर, सुभग, दुर्भग, सुस्वर,
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