Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 43
________________ तत्त्वार्थ सूत्र संस्तारोपक्रमण, अनादर और स्मृत्यनुपस्थापन - ये पाँच पौषधोपवास व्रत के अतिचार हैं। सचित-संबद्ध-संमिश्रा-ऽभिषव-दुष्पक्वा-ऽऽहाराः ॥३०॥ अर्थ - सचित आहार, सचित संबद्ध आहार, सचित संमिश्र आहार, अभिषव और दुष्पक्व आहार - ये पाँच उपभोग परिभोग व्रत के अतिचार हैं - सचित्तनिक्षेप-पिधान-परव्यपदेश-मात्सर्यकालाऽतिक्रमाः ॥३१॥ अर्थ - सचित्त निक्षेप, सचित्त-पिधान, परव्यपदेश, मात्सर्य और कालातिक्रम-अतिथि संविभाग व्रत के ये पाँच अतिचार हैं। जीवित-मरणाशंसा-मित्रानुराग-सुखा-ऽनुबन्धनिदानकरणानि ॥३२॥ अर्थ - जीवित-आशंसा, मरण-आशंसा, मित्रअनुराग, सुख-अनुबंध और निदानकरण - ये पाँच अतिचार संलेखनाव्रत के हैं। अनुग्रहार्थं स्वस्या-तिसर्गोदानम् ॥३३॥ अर्थ - अनुग्रह के हेतु अपनी किसी भी वस्तु का त्याग करना दान कहलाता है। विधि-द्रव्य-दातृ-पात्रविशेषाच्च तद्धिशेषः ॥३४॥ अर्थ - विधि, द्रव्य, दाता और पात्र इनकी विशेषता से दान धर्म के फल में विशेषता होती है।

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