Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 42
________________ ४१ नत तत्त्वार्थ सूत्र ___ ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रम-क्षेत्रवृद्धि-स्मृत्यन्तर्धानानि ॥२५॥ अर्थ - ऊर्ध्वव्यतिक्रम, अधोव्यतिक्रम, तिर्यग्व्यति-क्रम, क्षेत्रवृद्धि और स्मृत्यन्तराधान-येदिग्व्रत के पाँच आतिचार हैं। आनयन-प्रेष्यप्रयोग-शब्द-रूपा-ऽनुपात-पुद्गलक्षेपाः ॥२६॥ अर्थ - आनयनप्रयोग, प्रेष्यप्रयोग, शब्दानुपात, रूपानुपात और पुद्गलक्षेप - ये पाँच अतिचार देशावकाशिक व्रत के हैं - कन्दर्प-कौत्कुच्य-मौखर्या-ऽसमीक्ष्या-ऽधिकरणोपभोगा-ऽधिकत्वानि ॥२७॥ अर्थ - कन्दर्प, कौत्कुच्य, मौखर्य, असमीक्ष्याधिकरण और उपभोगाधिकत्व ये पाँच अनर्थदंड विरमणव्रत के अतिचार हैं। योग-दृष्प्रणिधाना-ऽनादर-स्मृत्यनुपस्थापनानि ॥२८॥ अर्थ - मनोदुष्प्रणिधान, वचनदुष्प्रणिधान, कायदुष्प्रणिधान, अनादर तथा स्मृतिअनुपस्थापन ये पाँच सामायिक व्रत के अतिचार हैं। अप्रत्यवेक्षिता-ऽप्रमार्जितोत्सर्गा-ऽऽदान-निक्षेपसंस्तारोपक्रमणा-ऽनादर-स्मृत्यनुपस्थापनानि ॥२९॥ अर्थ - अप्रत्यवेक्षित-अप्रमार्जित-उत्सर्ग, अप्रत्य-वेक्षितअप्रमार्जित आदानानिक्षेप, अप्रत्यवेक्षित-अप्रमार्जित

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