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तत्त्वार्थ सूत्र
३९ अर्थ - अणुव्रतों को धारण करनेवाला अगारी (गृहस्थ) व्रती है।
दिग्देशा-ऽनर्थदण्डविरति-सामायिक-पौषधोपवासोपभोग परिभोगपरिमाणा-ऽतिथिसंविभाग-व्रत संपन्नश्च ॥१६॥
अर्थ - वह अगारी दिग्व्रत, देशव्रत, अनर्थदण्ड विरमण व्रत, सामायिक व्रत, पौषधोपावस व्रत, उपभोग परिभोग परिमाण व्रत और अतिथि संविभाग व्रत इन सात व्रतों से भी सम्पन्न होता है।
मारणान्तिकी संलेखनां जोषिता ॥१७॥
अर्थ - वह मारणान्तिक संलेखना का भी आराधक होता है।
शङ्का-काङ्क्षा-विचिकित्सा-ऽन्यदृष्टिप्रशंसासंस्तवाः सम्यग्दृष्टे-रतिचाराः ॥१८॥
अर्थ – सम्यग्दर्शन के पाँच अतिचार होते हैं - शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, अन्यदृष्टि प्रशंसा और अन्यदृष्टि संस्तव ।
व्रत-शीलेषु पंच पंच यथाक्रमम् ॥१९॥
अर्थ – पाँच व्रतों और सात शीलों (तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत) के पाँच पाँच अतिचार होते हैं, ये क्रमशः इस प्रकार हैं।
बन्ध-वध-छविच्छेदा-ऽतिभारारोपणा-ऽन्नपान निरोधाः ॥२०॥
अर्थ - बन्ध, वध, छविच्छेद, अतिभारारोपण और