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तत्त्वार्थ सूत्र
अर्थ - सौधर्म आदि देवलोक में देवों की आयु क्रमशः होती है।
सागरोपमे ॥३४॥ __अर्थ - सौधर्म देवलोक में दो सागरोपम की आयु होती है।
अधिके च ॥३५॥
अर्थ - ईशान देवलोक में दो सागरोपम से कुछ अधिक होती है।
सप्त सानत्कुमारे ॥३६॥ अर्थ - सानत्कुमार में सात सागरोपम की आयु होती है।
विशेष-त्रि-सप्त-दशैकादश-त्रयोदश-पंचदशभिरधिकानि च ॥३७॥
अर्थ - माहेन्द्र देवलोक से आरण-अच्युत तक क्रमशः कुछ अधिक सात सागरोपम आयु होती है । ___ आरणा-ऽच्युतादूर्ध्व-मेकैकेन नवसुप्रैवेयकेषु विजयादिषु सर्वार्थसिद्धे च ॥३८॥
अर्थ - आरण-अच्युत के ऊपर नौ ग्रैवेयक, चार विजयादि और सर्वार्थसिद्ध की स्थिति अनुक्रम से एक-एक सागरोपम अधिक है।
अपरा पल्योपम-मधिकं च ॥३९॥
अर्थ - सौधर्म और ईशान में जघन्य आयु क्रमशः एक पल्योपम और अधिक एक पल्योपम होती है।