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तत्त्वार्थ सूत्र __ अर्थ - लोकान्तिक देव नौ प्रकार के है - १. सारस्वत, २. आदित्य, ३. वह्नि, ४. अरूण, ५. गर्दतोय, ६. तुषित, ७. अव्याबाध, ८. मरूत और ९. अरिष्ट ।
विजयादिषु द्विचरमाः ॥२७॥
अर्थ - विजयादि चार अनुत्तर विमानों के देव द्विचरम होते हैं।
औपपातिक-मनुष्येभ्यः शेषास्तिर्यग्योनयः ॥२८॥
अर्थ - औपपातिक और मनुष्य के अतिरिक्त सभी जीव तिर्यंच योनि वाले होते हैं ।
स्थितिः ॥२९॥ अर्थ - यहाँ से आयु का वर्णन शुरू होता है।
भवनेषु दक्षिणाऽर्धा-ऽधिपतीनां पल्योपम-मध्यर्धम् ॥३०॥
अर्थ - भवनपतियों में दक्षिणार्द्ध के इन्द्रों की आयु डेढ़ पल्योपम होती है।
शेषाणां पादोने ॥३१॥ अर्थ - शेष इन्द्रों की आयु पौने दो पल्योपम होती है। असुरेन्द्रयोः सागरोपम-मधिकं च ॥३२॥
अर्थ - दो असुरेन्द्रों की आयु क्रमशः एक सागरोपम और एक सागरोपम से कुछ अधिक होती है।
सौधर्मादिषु यथाक्रमम् ॥३३॥