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तत्त्वार्थ सूत्र
अर्थ - अल्प- आरंभ, अल्प- परिग्रह, स्वभाव में और सरलता से मनुष्यायु का बंध होता है । निःशील-व्रतत्वं च सर्वेषाम् ॥१९॥
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मृदुता
अर्थ - शील रहितता और व्रतरहितता पूर्वोक्त सभी आयुओं के बन्ध हेतु हैं ।
सरागसंयम-संयमासंयम - ऽकामनिर्जरा-बालतपांसि दैवस्य ॥२०॥
अर्थ - सरागसंयम, संयमासंयम, अकामनिर्जरा और बालतप से देवायु का बंध होता है ।
योगवक्रता विसंवादनं चा- शुभस्य नाम्नः ॥२१॥ अर्थ - योग की वक्रता और विसंवाद अशुभ नाम कर्म के बन्ध हेतु है ।
तद्विपरीतं शुभस्य ॥२२॥
अर्थ - विपरीत अर्थात् योग की अवक्रता और अविसंवाद शुभ नाम कर्म के बन्ध हेतु हैं ।
दर्शनविशुद्धि - विनय संपन्नता शीलव्रतेष्वनतिचारोऽभीक्ष्णं ज्ञानोपयोग - संवेगौ शक्तितस्त्याग-तपसी, संघ - साधु-समाधि-वैयावृत्यकरण - मर्हदा - चार्य - बहुश्रुतप्रवचन - भक्ति- रावश्यका - ऽपरिहाणि मार्ग प्रभावना प्रवचन वत्सलत्व-मिति तीर्थकृत्तवस्य ॥ २३ ॥