Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 30
________________ २९ तत्त्वार्थ सूत्र संघात-भेदेभ्य उत्पद्यन्ते ॥२६॥ अर्थ - संघात (जुड़ने), भेद (पृथक्-पृथक्) और संघात भेद (जुड़ने और पृथक् होने) इन तीनों में से किसी भी एक कारण से स्कन्ध की उत्पत्ति होती हैं । भेदादणुः ॥२७॥ अर्थ - स्कन्धों का भेद होने पर अणु की उत्पत्ति होती है। भेद-संघाताभ्यां चाक्षुषाः ॥२८॥ अर्थ - भेद और संघात से चाक्षुष स्कन्ध बनते हैं। उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य-युक्तं सत् ॥२९॥ अर्थ - जो उत्पाद (उत्पत्ति), व्यय (विनाश) और ध्रौव्य (स्थिरता) से युक्त है, वह सत् है। तद्भावाव्ययं नित्यम् ॥३०॥ अर्थ - जो अपने भाव से (जाति से) च्युत न हो वही नित्य है। अर्पिता-ऽनर्पित-सिद्धेः ॥३१॥ अर्थ - प्रधानता और गौणता के द्वारा वस्तु की सिद्धि होती है। स्निग्ध-रूक्षत्वाद् बन्धः ॥३२॥ अर्थ - स्निग्धत्व (चिकनेपन) और रूक्षत्व (रूखेपन) से पुद्गलों का परस्पर बन्ध होता है।

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