Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 29
________________ २ तत्त्वार्थ सूत्र आकाशस्या-ऽवगाहः ॥१८॥ अर्थ - स्थान प्रदान करना आकाश द्रव्य का कार्य है। शरीर-वाङ्मनः-प्राणा-ऽपाना:पुद्गलानाम् ॥१९॥ अर्थ - शरीर, वाणी, मन, श्वासोश्वास, ये पुद्गल द्रव्यों के उपकार हैं। सुख-दुख-जीवित-मरणोपग्रहाश्च ॥२०॥ अर्थ - सुख-दुख, जन्म-मरण भी पुद्गल द्रव्यों के उपकार हैं। परस्परोपग्रहो जीवानाम् ॥२१॥ अर्थ - परस्पर के कार्य में निमित्त होना जीवों का उपकार है। वर्तना परिणामः क्रिया परत्वा-ऽपरत्वे च कालस्य ॥२२॥ अर्थ - वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्वये काल द्रव्य के उपकार हैं । स्पर्श-रस-गन्ध-वर्णवन्तः पुद्गलाः ॥२३॥ अर्थ - स्पर्श, रस, गंध और वर्णवाले पुद्गल होते हैं। शब्द-बन्ध-सौक्ष्म्य-स्थौल्य-संस्थान-भेदतमश्छाया-ऽऽतपोद्योतवन्तश्च ॥२४॥ __ अर्थ - तथा वे शब्द, बन्ध, सूक्ष्मत्व, स्थूलत्व, संस्थान, भेद, अन्धकार, छाया, आतप और उद्योत वाले भी होते हैं।

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