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तत्त्वार्थ सूत्र
अर्थ - उन नारक जीवों की उत्कृष्ट आयु क्रमशः एक, तीन, सात, दस, सत्रह, बाईस और तैंतीस सागरोपम होती है। जम्बूद्वीप-लवणादयःशुभनामानो द्वीप-समुद्राः ॥७॥
अर्थ - मध्यलोक में जम्बूद्वीप आदि शुभ नाम वाले असंख्य द्वीप तथा लवण समुद्र आदि शुभ नाम वाले असंख्य समुद्र हैं। द्विढिविष्कम्भाः पूर्व-पूर्व-परिक्षेपिणो वलयाकृतयः ॥८॥
__ अर्थ - ये सभी द्वीप और समुद्र दुगुने दुगुने विस्तार वाले हैं, पूर्व-पूर्व द्वीप समुद्र को घेरे हुए हैं और चूड़ी के आकारवाले हैं।
तन्मध्ये मेरूनाभिर्वत्तो योजन - शत-सहस्त्रविष्कम्भो जम्बूद्वीपः ॥९॥
अर्थ - उन सब (द्वीप-समुद्रों) के मध्य में जम्बू नामक गोलाकार द्वीप है, जो एक लाख योजन चौड़ा है और उसके बीचोंबीच मेरूपर्वत है। अतः मेरू को जम्बूद्वीप की नाभि कहा जाता है।
तत्र भरत-हेमवत-हरि-विदेह-रम्यक्-हैरण्यवतैरावत-वर्षाः क्षेत्राणि ॥१०॥
अर्थ - जम्बूद्वीप में सात क्षेत्र हैं - भरत, हैमवत, हरि वर्ष, महाविदेह, रम्यक्, हैरण्यवत और ऐरावत ।
तद्विभाजिनः पूर्व परायता हिमवन्महाहिमवन्निषधनील-रूक्मि-शिखरिणो वर्षधर-पर्वताः ॥११॥