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तत्त्वार्थ सूत्र वैक्रिय-मौपपातिकम् ॥४७॥
अर्थ – उपपात जन्म लेने वाले जीवों का वैक्रिय शरीर होता है।
लब्धि-प्रत्ययं च ॥४८॥ अर्थ - यह लब्धि रूप से भी होता है।
शुभं विशुद्ध-मव्याघातिचाऽऽहारकं चतुर्दशपूर्वधरस्यैव ॥४९॥
अर्थ - आहारक शरीर शुभ, विशुद्ध, बाधा रहित और वह चौदह पूर्वधारी को ही होता है ।
नारक-सम्मूच्छिनो नपुंसकानि ॥५०॥ अर्थ - नारकी और सम्मूच्छिम जीव नपुंसक ही होते हैं। न देवाः ॥५१॥ अर्थ - देव नपुंसक नहीं होते।
औपपातिक-चरमदेहोत्तम-पुरूषा-ऽसंख्येयवर्षायुषोऽनपवायुषः ॥५२॥
अर्थ - उपपात जन्मवाले, चरमशरीरी, उत्तमदेहवाले और असंख्यात वर्ष की आयुवाले जीव अनपवर्तनीय आयुवाले होते हैं।