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तत्त्वार्थ सूत्र
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तृतीय अध्याय रत्न-शर्करा-बालुका-पंक - धूम - तमो-महातमः प्रभा भूमयो । घनाम्बु- वाताऽऽकाश-प्रतिष्ठाः सप्ताऽधौ -ऽधः पृथुतरा ॥ १ ॥
अर्थ - रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमः प्रभा और महातमः प्रभा ये सात भूमियाँ हैं, जो घनाम्बु, घनवात, तनुवात और आकाश के आधार पर स्थित है, क्रम से एक दूसरे के नीचे हैं तथा क्रमशः एक दूसरे से अधिक विस्तारवाली हैं ।
तासु नरकाः ॥२॥
अर्थ - उन भूमियों में नरक (नाक) है ।
नित्या -ऽशुभतर- लेश्या - परिणाम- देह - वेदनाविक्रियाः ॥३॥
अर्थ - नारकी जीव निरन्तर अशुभतर लेश्या, परिणाम, देह, वेदना और विक्रिया वाले होते हैं ।
परस्परोदीरित दुःखाः ॥४॥
अर्थ - वे परस्पर एक-दूसरे को दुःख देते रहते हैं । संक्लिष्टा - ऽसुरोदीरित- दुःखाश्च प्राक् चतुर्थ्याः ॥ ५ ॥ अर्थ - चौथी नरक भूमि से पहले यानी तीसरी नरक भूमि तक नारकी जीव क्रूर स्वभावी, परमाधामी, देवों के द्वारा दिये गये दुखों से भी पीड़ित होते हैं ।
तेष्वेक - त्रि-सप्त- दश- सप्तदश-द्वाविंशतित्रयस्त्रिंशत्-सागरोपमाः सत्त्वानां परा स्थितिः ॥६॥