Book Title: Tab Hota Hai Dhyana ka Janma
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 12
________________ तब होता है ध्यान का जन्म महापुरुष का जन्म शुभ बेला, शुभ घड़ी और शुभ नक्षत्र में होता है। ध्यान एक महान तत्त्व है। जब कोई विशिष्ट अवस्था होती है. विशिष्ट अवसर होता है और कोई शुभ नक्षत्र होता है तब ध्यान का अवतरण होता है। बाह्य और आंतरिक वातावरण ध्यान के अवतरण के लिए कुछ मर्यादाओं का निर्देश किया गया है। बाहरी और आंतरिक दोनों वातावरण अनुकूल होते हैं तब ध्यान का जन्म होता है। स्वच्छ स्थान, कोलाहल से मुक्त पवित्र वातावरण, पद्मासन, वज्रासन या अर्द्धवज्रासन, बन्द या अधमूंदी आंखें, जिनमुद्रा. ज्ञानमुद्रा अथवा खुले हाथ की मुद्रा, बाएं हाथ पर दायां हाथ-यह सब ध्यान का बाहरी वातावरण है। इस वातावरण में ध्यान का जन्म होता दूसरा है आंतरिक वातावरण। आचार्य रामसेन ने ध्यान की जन्मसामग्री का निर्देश इस प्रकार किया है संगत्याग: कषायाणां, निग्रहो व्रतधारणम् । मनोक्षाणां जयश्चेति, सामग्री ध्यानजन्मनि।। जब संग का त्याग होता है, आसक्ति कम होती है तब ध्यान का जन्म होता है। तीव्र आसक्ति वाले पुरुष में कभी ध्यान जन्म नहीं लेता। कषायों पर अपना नियंत्रण होता है तो ध्यान का जन्म होता है। बहुत तीव्र कषाय वाले व्यक्ति में ध्यान का जन्म नहीं होता। जिस व्यक्ति में संकल्प होता है, व्रत और नियम होता है, उसमें ध्यान का जन्म होता है। असंयमी मनुष्य में ध्यान का जन्म नहीं होता। जब मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण होता है तब ध्यान का जन्म होता है। अनासक्ति. कषाय-निग्रह, मनोविजय, व्रत-धारण और इन्द्रिय-विजय-यह ध्यान की जन्म-सामग्री है। जहां ऐसा वातावरण है वहां ध्यान उत्पन्न होता है। जैन आगमों में देवों के जन्म के संदर्भ में बताया है कि उपपत्ति स्थान में शय्या होती है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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