Book Title: Syadvadasiddhi Author(s): Darbarilal Nyayatirth Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti View full book textPage 7
________________ प्राकथन अशाश्वत है ? ३ लोक अन्तवान् है ? ४ लोक अनन्त है ? ५ जीव और शरीर एक है ? ६ जीव दूसरा और शरीर दूसरा है ? ७ मरनेके बाद तथागत होते हैं ? ८ मरनेके बाद तथागत नहीं होते ? ६ मरने के बाद तथागत होते भी हैं नहीं भी होते हैं ? १० मरने के बाद तथागत न होते हैं न नहीं होते ? इन दृष्टियों को भगवान मुझे नहीं बतलाते, यह मुझे नहीं रुचता- मुझे नहीं खमता। सो मैं भगवान्के पास जाकर इस बातको पूंछू । यदि मुझे भगवान् कहेंगे तो मैं भगवानके पास ब्रह्मचर्य-वास करूँगा। यदि मुझे भगवान् न बतलाएँगे तो मैं भिक्षु-शिक्षाका प्रत्याख्यान कर हीन (गृहस्थाश्रम ) में लौट जाऊँगा। ___मालुंक्यपुत्तने बुद्धसे कहा कि यदि भगवान् उक्त दृष्ठियोंको जानते है तो मुझे बतायें । यदि नहीं जानते तो न जानने समझने के लिए यही सीधी ( बात ) है कि वह ( साफ कह दें) मैं नहीं जानता, मुझे नहीं मालूम । बुद्धने कहा "क्या मालंक्यपुत्त, मैंने तुझसे यह कहा था कि श्रा मालंक्यपुत्त, मेरे पास ब्रह्मचर्यवास कर, मैं तुझे बतलाऊँगा लोक शाश्वत है आदि।" __“नहीं, भंते" मालुक्यपुत्तने कहा। "क्या तूने मुझसे यह कहा था-मैं भन्ते, भगवान्के पास ब्रह्मचर्यवास करूँगा, भगवान मुझे बतलायें लोक शाश्वत है आदि ।” "नहीं, भंते" "इस प्रकार मालंक्यपुत्त न मैंने तुझसे कहा था कि आ..."; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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