Book Title: Syadvadasiddhi Author(s): Darbarilal Nyayatirth Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti View full book textPage 5
________________ प्राकथन भारतीय ज्ञानपीठ काशीकी कन्नड़ - शाखा द्वारा भंडार सूची निर्माण के समय जो अनुपलब्ध ग्रंथ मिले थे उनमें वादीभसिंह सूरि द्वारा रचित स्याद्वादसिद्धि भी है । इसकी एकमात्र जीर्णशीर्ण खंडित प्रति मूडबिद्रीके जैन भंडारसे उपलब्ध हुई थी । प्रसन्नताकी बात है कि यह कृति दिगम्बर जैन साहित्यकी उद्धारक आद्य संस्कृत-प्रन्थावलि माणिकचन्द्र दि० जैन ग्रंथमालामें इस विषय के अध्ययन प्रवण विद्वान् पं० दरबारीलालजी कोठिया न्यायाचार्य द्वारा सम्पादित होकर प्रकाशित हो रही है । दर्शनग्रंथोंके सम्पादन में अब आन्तरिक विषय - परिचयका भी एक विभाग रहना चाहिए, जिसमें ग्रन्थगत विषयोंका मुद्देवार संक्षिप्त सार आ जाय । इससे जिज्ञासुओंकी अंशतः जिज्ञासा-तृप्ति तो होगी ही, साथ ही साथ इस साहित्य के प्रचार, पठन-पाठन आदिकी ओर अभिरुचि भी जागृत होगी । प्रस्तुत ग्रन्थका नाम तो स्याद्वादसिद्धि है पर इसमें जीवसिद्धि, सर्वज्ञसिद्धि, जगत्कर्तृत्वाभावसिद्धि आदि अनेक प्रकरण हैं । ग्रन्थकारका स्पष्ट आशय है कि सब प्राणी सुख चाहते हैं पर सुख के उपायका उन्हें ज्ञान नहीं है । अतः हम सुखका कारण धर्म और धर्मकर्तृत्व कैसे जीवके हो सकता है उसका निरूपण करते हैं । स्याद्वाद के विषयभूत जीवमें ही धर्मका कर्तृत्व और उसके फलका भोक्तृत्व बन सकता है यह प्रतिपादन करने के प्रसंगसे ही अन्य प्रकरणोंका निर्माण हुआ है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 172