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नवम अधिकार में द्वादशानुप्रेक्षाओं का सुन्दर विवेचन हुआ। ये अनुप्रेशायें प्रतिदिन पाठ करने योग्य है।
द्वादश अधिकार में २७ पद्य से ३७वें पद्य तक नमस्कार मन्त्र की महिमा का वर्णन करते हुए उसे सुख-प्राप्ति का साधन, सागं और मोक्ष का एक मात्र कारण, विघ्नों का निवारक तथा महाप्रभाधक बणित किया गया है। कवि के अनुसार जिस प्रकार समस्त वृक्षों में कल्पवृक्ष सुशोभित होता है, उसी प्रकार समस्त मन्त्रों में यह मन्त्रराज विराजित है।।
• प्रत्येक अधिकार में जैनधर्म के विशिष्ट पारिभाषिक शब्द पाए हैं, जो कि जैन अध्येताओं के लिए प्रायः सुगम है। अभयमनी की श्रृंगारिक चेष्टाओं के मामन सुदर्शन का निर्विकार रहना उनकी धीरता, गम्भीरना और वत के प्रति दृढ़ निष्टा को अभिव्यक्त करता है। सुदर्शन मुनि का जीवन आदर्श जीवन है, जिससे कोई भी व्यक्ति शिक्षा ले सकता है। अनुप्रेक्षा अधिकार को छोड़कर कथा अपने प्रवाह में चलती है । बीच बीच में जो धार्मिक चर्चायें हुई हैं. उनसे भी पाठकों को कब पंदा नहीं होतो है, अपितु' आदर्श जीवन की प्रेरणा मिलती है । इस प्रकार अभिव्यक्ति को सार्थकता इसमें दुष्टिगोचर होती है ।
आभार प्रदर्शन
पूज्य १०८ उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज के प्रति मैं अपनी विनम्र अक्षा व्यक्त करता हूँ, जिनकी प्रेरणा से मैं सुदर्शनचरित के अनुवाद में प्रवृत्त हुआ । यह ग्रन्थ भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा संचालिन माणिकचन्द दि० जैन अन्य माला के ग्रन्यांक ५१ के अन्तर्गत महामनीषी डॉ. हीरालाल जैन के सम्पादकत्व में प्रकाशित हुआ था । उन्होंने ग्रन्थ को सब प्रकार से उपयोगी बनाने की लेष्टा को है। इसकी विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावना मुझे भूमिका लिखने में बीपतुल्य सिय हुई है और इसका मैंने भरपूर उपयोग भी किया है। पूज्य १०८ प्राचार्य मानसागर महाराज के सुदर्शनोदय काव्य की पं० हीरालाल मिद्धान्तशास्त्री द्वारा लिखित प्रस्तावना मेरे लिए उपयोगी सिद्ध हुई है। इसके अतिरिक्त भट्टारक सम्प्रदाय, णमोकार मन्त्र : एक अनुचिन्तन, सिद्धान्ताचार्य पं. फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन ग्रन्थ, जैनेन्द्र सिद्धान्त कोष एवं विविध कथा ग्रन्थों से मुझे सहायता प्राप्त हुई है। मैं इनके प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता है। मेरा यह सारा परिश्रम निष्फल रह जाता यदि उपाध्याय श्री भरतसागर जी महाराज, मायिका स्पाद्वादननी माताजी एवं ब्रह्मचारिणी प्रभा पाटनी व पं० धर्मचन्दजी शास्त्रो इसके प्रकाशन में प्रेरक और सहायक न होते। सब कार्यकलापों की