Book Title: Sramana 1990 07
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 27
________________ भारतीय राजनीति में जैन संस्कृति का योगदान ___-इन्द्रेश चन्द्र सिंह प्राचीन भारतीय संस्कृतियों में जैन संस्कृति का एक विशिष्ट गौरवपूर्ण स्थान है। इसने जनमानस में आध्यात्मिक जीवन-दृष्टि का बीजारोपण किया है। अन्तरमलों का परिशोधन ही जैन संस्कृति की साधना तथा आत्मपूर्णता और आत्म स्वातन्त्र्य ही इसका चरमलक्ष्य है। यह जीवन को परिष्कृत और परिमार्जित करने के लिए भोग से त्याग की ओर, राग से विराग की ओर, विकार से संस्कार की ओर आगे बढ़ने की सतत् प्रेरणा देती है। जैन संस्कृति (साधना) का साध्य मोक्ष रहा है अतः उसकी प्रत्येक प्रवृत्तियों में त्याग और वैराग्य की प्रधानता होना स्वाभाविक है। उसमें मुक्ति की प्राप्ति के लिए निवत्ति आवश्यक है। प्रवृत्ति का कार्य आस्रव एवं निवृत्ति का कार्य संवर है। आस्रव संसार की अभिवृद्धि का कारण है और संवर मोक्ष का । यही कारण है कि जैन संस्कृति ने प्रवृत्ति के परित्याग और निवृत्ति को ग्रहण करने का संदेश दिया। जैन संस्कृति के आचार्य अध्यात्म के प्रोत्साहक रहे हैं। आध्यात्मिक विषयों पर जितना उन्होंने लिखा है शायद अन्य दार्शनिकों ने नहीं। उनके द्वारा लिखे गये गंभीर व तलस्पर्शी विवेचनों को पढ़कर प्रतिभायुक्त विज्ञजनों के हृद-तंत्री के सुकुमार तार सहज ही झंकृत हो उठते ___ अध्यात्म के गंभीर विवेचन के साथ ही जैन संस्कृति के सन्तों ने समाज और राजनैतिक विषयों पर भी लेखनी चलाई है। आचार्य श्री हेमचन्द्र की 'अर्हन्नीति' और आचार्य श्री सोमदेव के 'नीतिवाक्यामृत' में समाज-व्यवस्था पर विशद् विवेचन है। यह ठीक है कि मुनिमर्यादाओं में आबद्ध होने के कारण उन्होंने 'मनुस्मृति' आदि की तरह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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