Book Title: Sramana 1990 07
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 45
________________ कल्पप्रदीप में उल्लिखित पश्चिमी भारत के जैन तीर्थ डा० शिवप्रसाद खरतरगच्छालंकार, सुल्तानमुहम्मदतुगलकप्रतिबोधक, युगप्रधानाचार्य जिनप्रभसूरि द्वारा रचित कल्पप्रदीप अपरनाम विविधतीर्थकल्प सम्पूर्ण जैन साहित्य में एक अद्वितीय ग्रंथ है। यह ग्रंथ वि० सं० १३८९ में योगिनीपुरपत्तन (दिल्ली) में पूर्ण हुआ, जैसा कि इसकी प्रशस्ति से स्पष्ट है-- नन्दा-ऽनेकप-शक्ति-शीतगुमिते श्रीविक्रमोर्वीपतेवर्षे भाद्रपदस्य मास्यवरजे सौम्ये दशम्यां तिथौ । श्रीहम्मीरमहम्मदे प्रतपति क्षमामण्डलाखण्डले ग्रन्थोऽयं परिपूर्णतामभजत श्रीयोगिनीपत्तने ॥३॥ तीर्थानां तीर्थभक्तानां कीर्तनेन पवित्रितः। कल्पप्रदीपनामाऽयं ग्रन्थो विजयतां चिरम् ॥४॥ ॥ इति श्रीकल्पप्रदीपग्रन्थः समाप्तः ।। इस ग्रंथ में लगभग ४० जैन तीर्थों का कल्प-रूप में अलग-अलग विवरण प्रस्तुत किया गया है। इनके अतिरिक्त "चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प' नामक स्वतन्त्रकल्प के अन्तर्गत २४ तीर्थंकरों से सम्बन्धित तीर्थस्थानों का अलग-अलग नामोल्लेख किया गया है। वस्तुतः कल्पप्रदीप में सम्पूर्ण भारतवर्ष के १४वीं शती तक के प्रसिद्ध प्रायः सभी जैन तीर्थों का उल्लेख है। कल्पप्रदीप में उल्लिखित वे जैनतीर्थ जो पश्चिमी भारत ( वर्तमान गुजरात-राजस्थान) में अवस्थित हैं, की एक तालिका इस प्रकार है-- अ-गुजरात-सौराष्ट्र १-अजाहरा (अजारी) २-अम्बुरिणीग्राम (आमरण) ३-अणहिलपुरपत्तन ४-अश्वावबोधतीर्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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