________________
( ४९ ) श्वरमहादेव' को अपने कुलदेवता के रूप में प्रतिष्ठित किया था। यह मंदिर प्राचीन है, परन्तु अनेक बार इसका पुनर्निर्माण कराया गया है। यहाँ से वि०सं० १२९४, वि०सं० १३४३, वि० सं० १३७७ तथा वि०सं० ३८७ एवं बाद के कई लेख प्राप्त हुए हैं जो इस शिवालय के पुननिर्माण, दान आदि की चर्चा करते हैं।' इसी मंदिर के पास 'मन्दाकिनी' नामक एक कुंड है, जिसकी लम्बाई ९०० फुट तथा चौड़ाई २४० फुट के लगभग है ।२।।
विमलशाह ने वि० सं० १०८८ में यहाँ विमलवसही का निर्माण कराया, ऐसा जिनप्रभ ने उल्लेख किया है। परन्तु यहाँ से 'विमलशाह' का अथवा उसके समय का ऐसा कोई भी अभिलेख प्राप्त नहीं हुआ है, जिसमें उक्त बात की चर्चा हो । विमलवसही से प्राप्त सबसे प्राचीन अभिलेख में जो देवकुलिका नं. १३, वि. सं. १११९/ई० सन् १०६३ का है, शान्तमात्य की पत्नी शिवदेवी द्वारा प्रतिमा स्थापित करने की चर्चा है । इस अभिलेख में विमल अथवा उसके द्वारा निर्मित मंदिर की कोई चर्चा नहीं मिलती, परन्तु पीढ़ी-दर-पीढ़ी ऐसा विश्वास बना रहा कि इस मंदिर का निर्माण 'विमलशाह' ने कराया । यह कथानक १४-१५वीं शती के ग्रन्थों से प्राप्त होता है। विमल वसही से प्राप्त दो अन्य अभिलेख, जो वि० सं० के १३वीं शती के मध्य के हैं, इस बात का समर्थन करते हैं कि यह मंदिर विमल द्वारा निर्मित कराया गया । उदाहरण के लिये देवकुलिका नं० १० से प्राप्त लेख जो वि० सं० १२०१/ई० सन ११४५ का है, वीर 'प्रथम' के पुत्र 'नेढ़' से सम्बन्धित है, इसमें कहा गया है कि 'वीर' के द्वितीय पुत्र 'विमल' ने यहाँ ऊँचा मन्दिर बनवाया। दूसरा लेख देवकुलिका १. मुनि-जयन्तविजय--पूर्वोक्त पृ० १९८;
मुनि जिनविजय... प्राचीनजेनलेखसंग्रह, भाग २ 'अवलोकन', पृ० १४० २. मुनिजयन्तविजय-पूर्वोक्त, पृ० १९९ 3. Dhaky, M A. _“Complexities Surrounding The Vimal
vasami Temple At Mt. Abu." Occasional Papers Series, Department of South Asia Regional Studies,
University of Pennryluania, Philadelphiya-1980. ४. मुनिजयन्तविजय-अर्बुदप्राचीनलेखसंदोह, लेखाङ्क ५१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org