Book Title: Sramana 1990 07
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 50
________________ ( ५० ) नं० ५ से प्राप्त हुआ है, यह वि० सं० १२०२/ई० सन् ११४६ का है और कुंथुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। इस लेख के विवरणानुसार यह प्रतिमा केल्हा, वोल्हा तथा अन्य सूत्रधारों ने निर्मित किया।' ये संभवतः पृथ्वीपाल द्वारा रखे गये शिल्पकार थे। सोलंकीकाल का कोई भी ऐसा कथानक अथवा अभिलेख प्राप्त नहीं हुआ है जिसमें विमल द्वारा निर्मित इस मंदिर के निर्माण-तिथि की चर्चा हो, तथापि सोलंकी काल के पश्चात् एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अभिलेख जो वि० सं० १३७८/ई० सन् १३२२ का है, में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इस युगादिदेव के मंदिर को वि० सं० १०८८ में विमल द्वारा निर्मित कराया गया। इसी विवरण के पश्चात् जिनप्रभसूरि का विवरण है, जिसमें उन्होंने भी यही बात कही है। १४वीं-१५वीं शती में लिखे गये 'प्रबन्धग्रंथों में भी इसी तथ्य का उल्लेख किया गया है। जैसेप्रबन्धकोश-" ( राजशेखर-वि० सं० १४०५); पुरातनप्रबन्धसंग्रह । प्रति-बी ), उपदेशतरंगिणी-५ (धर्मसिंहसूरि-वि० सं० १४६१) वस्तुपालचरित ( जिनहर्षगणि-वि० सं० १४९७), उपदेशसप्ततिका-७ (सोमधर्मसूरि-वि० सं० १५०३ ) आदि। इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि विमलशाह ने वि० सं० १० ८ के लगभग विमलवसही का निर्माण कराया।' १. सं० १२०२ आषाढ़ सुदि ६ सोमे सूत्र० सोढा साई सुत सूत्र• केला वोल्हा सहव लोयपा वागदेवादिभिः श्रीविमलवसतिकातीर्थे श्रीकुथुनाथप्रतिमा कारिता। मुनि जयन्तविजय-अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखाङ्क ३४ २. श्रीविक्रमादित्यनृपाद् व्य[*]तीतेऽष्टाशीतियाते (युक्ते) शरदां सहस्र । श्रीआदिदेवं शिखरे [s] बुदस्य निवेसि (शि)तं श्रीरि(वि)मलेन वंदे ।। मुनिजयन्तविजय-वही, लेखाङ्क १, श्लोक ११ ३. "वस्तुपालप्रबन्ध" प्रबन्धकोश पृ० १२१ ४. "विमलवसतिकाप्रबन्ध" पुरातनप्रबन्धसंग्रह पृ० ५१ ५. "श्री विमलमन्त्रिकीर्तिदानप्रबन्धः'' उपदेशतरंगिणी, पृ० ७२ ६. प्रस्ताव ८, श्लोक १२ और आगे ७. द्वितीय अधिकार, चतुर्थ उपदेश, श्लोक ७ और आगे ८. ढाकी, पूर्वोक्त-पृ० ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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