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( ७७ ) अलाउद्दीन खिलजी के भाई उलगूखान ने चित्तौड़ और गुजरात पर आक्रमण किया था। जिनप्रभसूरि ने इस आक्रमण की तिथि वि०सं० १३५६।ई० सन् १२९९ बतलायी है। मुस्लिम इतिहास लेखकों ने भी प्रायः यही तिथि बतलायी है।'
अलाउद्दीन ने वि० सं० १३६७/ई० सन् १३१० में राजपुताना पर आक्रमण कर सिवाना और जालोर को जीत लिया और उन्हें अपने साम्राज्य में मिला लिया। इस संदर्भ में जिनप्रभ का यह कथन कि उसने सत्यपुर के महावीर चैत्यालय को नष्ट किया, एवं प्रतिमा को दिल्ली भेज दिया, विश्वसनीय प्रतीत होता है। एक विजेता और मुस्लिम शासक होने के नाते वह गर्व से प्रायः अनेक देवालयों को नष्ट करता हुआ वापस लौटा होगा। उक्त विवरणों से स्पष्ट होता है कि सत्यपुर पर प्रथम बार वि०सं० १०८१ में महमूद गजनवी द्वारा आक्रमण किया गया और दूसरा आक्रमण अलाउद्दीन खिलजी द्वारा वि०सं० १३६७ में किया गया। इस बीच के वर्षों में यहाँ शान्ति रही और इस तीर्थ का बहुत महत्त्व रहा । यह बात यहाँ से प्राप्त वि० सं० १२२५,३ वि०सं० १२४२४, वि०सं० १२७७५, और वि०सं० १३२२६ के अभिलेखों ज्ञात होती है। इसके अलावा चौलुक्य नरेश अजयपाल ( वि० सं० १२२९-१२३२ ) के दण्डनायक आल्हण ने यहाँ के वीरचैत्य में महावीर स्वामी की प्रतिमा स्थापित करायी। वि० सं० १२८८ के लगभग वस्तुपाल-तेजपाल ने इस तीर्थ के महिमास्वरूप गिरनार पर्वत पर १. मजुमदार और पुसालकर-दिल्ली सल्तनत, (बम्बई, १९६७) पृ० १९ ।
वही, पृ० ३३ । २. वही, पृ० ३३ । ३. नाहर पूरन चन्द-जैन लेख संग्रह, भाग १-३ (कलकत्ता ई० १९१८-२९)
लेखाङ्क ९३२। ४. जैन, कैलाश चन्द्र-ऐन्शेंट सिरीज एण्ड टाउन्स ऑफ राजस्थान,
(दिल्ली, ई० सन् १९७२) पृ० १९८ । ५. शाह, अम्बालाल-जैनतीर्थसर्वसंग्रह, पृ० ३०५ । ६. वही, पृ० ३०५ । ७. देसाई, मोहन लाल दलीचंद-जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास
(बम्बई, ई० सन् १९३३ ) पृ० ३४२ ।
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