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शोधप्रबन्ध-सार
भट्ट अकलंककृत लघीयस्त्रय
एक दार्शनिक अध्ययन शोधकर्ता-हेमन्तकुमार जैन सारांश प्रस्तुति --डा० कपूरचन्द जैन
भट्ट अकलंक जैन न्याय और दर्शन के एक व्यवस्थापक आचार्य हैं। पूर्व परम्परा से प्राप्त जिस चिन्तन की दार्शनिक दृष्टि से अदम्य तार्किक समन्तभद्र और सिद्धसेन जैसे महान आचार्यों ने नींव के रूप में प्रतिष्ठापना की थी, उसी नींव के ऊपर सकलतार्किक चक्रचूड़ामणिभट्टअकलंक ने जैन न्याय और तर्कशास्त्र का अभेद और चिरस्थायी प्रासाद खड़ा किया है। उन्होंने अपने समकालीन विकसित दर्शनान्तरीय विचारधाराओं के गहन अध्ययनपूर्वक अपने ग्रन्थों में उनकी विस्तृत समीक्षा करके सर्वप्रथम प्रमाण, प्रमेय, प्रमाता आदि सभी पदार्थों का संस्कृत भाषा में अत्यन्त सूक्ष्म निरूपण ताकिक शैली से उपस्थित किया और सूत्र-शैली में अत्यन्त गूढ़ ऐसे ग्रंथों का सृजन किया, जो कभी उस समय जैन परम्परा में खल रही थी। बाद में भद्र अकलंक के इन ग्रन्थों पर प्रभाचन्द्र, अनन्तवीर्य, वादिराज, अभयचन्द्र जैसे आचार्यों ने बृहद् भाष्य ग्रन्थ लिख डाले। अकलंक ने प्रमाण-परिभाषा, उसके फल, विषय, मुख्य प्रत्यक्ष, सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष, परोक्ष प्रमाणान्तर्गत अनुमानादि, जय-पराजय व्यवस्था, बाद कथा आदि को परिभाषित करके जैन न्याय को इतना व्यवस्थित और समृद्ध कर दिया था कि उनके बाद आज तक किसी को नवीन चिन्तन की आवश्यकता नहीं पड़ी। ऐसे महान् दार्शनिक की कृतियों में से एक कृति “लघीयस्त्रय' के दार्शनिक विवेचन के रूप में लिखा गया यह शोध-प्रबन्ध मेरा एक प्रथम एवं लघु प्रयत्न है । इसमें लघीयस्त्रय के दार्शनिक पक्षों को स्पष्ट करने वाले आठ अध्याय रखे गये हैं, जिसका अध्याय क्रम से संक्षिप्त विवरण यहाँ प्रस्तुत है।
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