Book Title: Sramana 1990 07
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 70
________________ ( ७० ) ही रहा होगा और आक्रमणार्थं जाते समय वह मार्ग के मंदिरों को तोड़ता गया होगा । जिनप्रभसूरि ने गोरी के आक्रमण के समय यहाँ जिन प्रतिमा को भग्न करने की बात तो कही है परन्तु जिनालय तोड़ा गया अथवा नहीं, यह अज्ञात है । उन्होंने आक्रामकों के अन्धत्व एवं रुधिर वमन से ग्रसित होने की जो बात कही है, वह उनका व्यक्तिगत कोप ही समझना चाहिए । मुण्डस्थल कल्पप्रदीप के " चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प" के अन्तर्गत मुण्डस्थल का भी जैन तीर्थ के रूप में उल्लेख है और यहाँ भगवान् महावीर के मंदिर होने की बात कही गयी है । मुण्डस्थल आज मुंगथला के नाम से प्रसिद्ध है । और वर्तमान सिरोही जिले में अवस्थित है । यहाँ वि०सं० ८९५ / ई० सन् ८३८ का एक शिवालय विद्यमान है, जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि ९वीं शती में यह नगरी अस्तित्व में आयी होगी । यहाँ स्थित महादेव और महावीर के मंदिर अपनी प्राचीनता के लिये प्रसिद्ध हैं । मुण्डस्थल जैन तीर्थ के रूप में पूर्व मध्ययुग में प्रतिष्ठित हुआ । उत्तरकालीन जैन परम्परानुसार महावीर स्वामी ने छद्मवस्था में अर्बुदमंडल में विहार किया और गणधर केशी ने यहाँ उनका एक जिनालय निर्मित कराया । यह बात अष्टोत्तरीतीर्थमाला ( महेन्द्रसूरि ई० सन् १३वीं शती) ३ तथा इस जिनालय से प्राप्त वि० सं १४२६ के एक शिलालेख से ज्ञात होती है । परन्तु ये बातें स्पष्टतः काल्प१. शाह, अम्बालाल पी० - जैनतीर्थसर्वसंग्रह, पृ० २७९ २ . वही ४ ३. ४. मुनि विशालविजय - मुण्डस्थलमहातीर्थ, पृ० १५ से उद्धृत पूर्वे छद्मस्थकाले भुवि यमिनः कुर्वतः सद्विहारं [ सप्त ] त्रिशेच वर्षे वहति भगवतो जन्मतः कारितास्ताः (सा) । श्रीदेवार्यस्य यस्योल्लसदुपलमयी पूर्णराजेन राज्ञा श्रीकेशीसु ( शिना ) प्रतिष्टः स जयति हि जिनस्तीर्थ – मुण्डस्थलस्तु: ( स्थः ) || मुनि जयन्तविजय - अर्बुदाचलप्रदक्षिणा जैनलेख संदोह, लेखाङ्क ४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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