Book Title: Sramana 1990 07
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 56
________________ वि०सं० १३९५/ई० सन् १३३८ ), उपकेशगच्छपट्टावली,' उपकेश. गच्छगुर्वावली आदि उपलब्ध हैं । ___मुस्लिम आक्रमणों के समय यहां के जिनालयों को भी क्षति पहुँची, परन्तु उसके बाद भी मंदिरों का जीर्णोद्धार, और नूतन जिनप्रतिमाओं का निर्माण जारी रहा, यह बात यहाँ से प्राप्त लेखों से ज्ञात होती है। आज यहां जो मंदिर विद्यमान हैं, उनका स्थापत्य एवं कला की दृष्टि से विशेष महत्त्व है । उपकेशपुर ( ओसिया ) वर्तमान राजस्थान प्रान्त के जोधपुर से ५२ किमी० उत्तर-पश्चिम में स्थित है। ३. करहेटक कल्पप्रदीप के चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प के अन्तर्गत 'करहेटक' का भी जैन तीर्थ के रूप में उल्लेख है और यहां जिन पार्श्वनाथ के मंदिर होने की बात कही गयी है। - करहेटक आज करेड़ा के नाम से जाना जाता है। यह स्थान उदयपुर-चित्तौड़ रेलवे मार्ग पर करेड़ा स्टेशन से एक किलोमीटर दूर स्थित है। यहाँ पार्श्वनाथ का एक प्राचीन जिनालय है, जो बावन जिनालय के नाम से प्रसिद्ध है। इस जिनालय की देवकुलिका से वि०सं० १०३६ का एक शिलालेख मिला हैजिसके अनुसार 'यशोभद्रसूरि ने वि०सं० १०३९ में पार्श्वनाथ बिम्ब की स्थापना की।' इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि १०वीं शती के लगभग यह मंदिर निर्मित हुआ होगा। यहाँ से प्राप्त वि० सं० १३२६ के एक शिलालेख में इस स्थान का नाम "करहेडा" उल्लिखित है।५ मदिर में स्थित पार्श्वनाथ की श्याम संगमरमर की प्रतिमा पर वि० सं० १६५६ का एक लेख उत्कीर्ण है जिसमें इस जिनालय के जीर्णोद्धार १. मुनि दर्शन विजय-संपा० पट्टावलीसमुच्चय, भाग-१, पृ० १७७-१९४ २. मुनि जिनविजय-संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, पृ० ७-९ ३. त्रिपुटी महाराज-जैनतीथींनो इतिहास, पृ० ३७९ । ४. नाहर, पूरनचन्द-जैनलेखसंग्रह लेखाङ्क, १९४८ । ५. शाह, अम्बालाल पी०-जैनतीर्थसर्वेसंग्रह, पृ० ३४४ । ६. आर्कियोलाजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, वेस्टर्न सकिल, ई० सन् १९०५ पृ० ५९-६०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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